आतंक के अभिशाप से मुक्त हुई भाजपाई साध्वी

भोपाल, सबकी खबर।
2008 में हुए मालेगांव बम ब्लास्ट में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सहित सात लोगों को न्यायालय ने बरी कर दिया है। उन पर आरोप था कि उन्होंने मोटरसाइकिल के सहारे बम विस्फोट किया था जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हुए थे। इस मामले में पहले स्थानीय पुलिस ने जांच की थी। फिर एटीएस ने जांच की जिसमें मकोका लगा और साथ ही उसके बाद यह जांच एनआईए को सौंप दी गई थी। लंबे समय तक जांच चली। लंबे समय तक अदालती कारवाही चली और अंत में अप्रैल में यह सुनिश्चित हो गया था फैसला गुरूवार को आएगा । फैसले में अदालत ने सबूत के कमी के आधार पर इन सबको बरी कर दिया है। अदालत में पुलिस ने जो कारवाही की एटीएस ने जो कारवाई की एनआईए ने जो कारवाई की उन सबको भी सिलसिलेवार उस पर भी अपने फैसले में उल्लेख किया है।
बहूचर्चित मामला था मालेगांव बम ब्लास्ट
आपको बता दें कि यह बहुत चर्चित मामला है। 19 सितंबर 2000 आठ में मालेगांव में एक बम ब्लास्ट हुआ था। चहल-पहल भरे इलाके में बम ब्लास्ट में एक दोपहिया वाहन का इस्तेमाल किया गया था। जिस दोपहिया वाहन को बाद में जांच के दौरान एटीएस ने यह पाया था कि यह साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की का दोपहिया वाहन है। इसके बाद 2008 में ही 23 अक्टूबर को साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को जबलपुर से गिरफ्तार किया गया था। उनके साथ कुछ अन्य लोग शिव नारायण कालसांगरा और श्याम भावर को भी गिरफ्तार किया गया था। बाद में इस मामले में कर्नल पुरोहित को भी गिरफ्तार किया गया था और जिन पर आरोप यह था कि इन्होंने आरडीएक्स से बम बनाया है। आरडीएक्स यही लाए थे और इस मामले की लंबी समय तक कारवाई चली। इसमें कई तरह की प्रक्रियाओं से भी जांच को गुजरना पड़ा। इस मामले में के बारे में अगर हम आपको बताएं तो जब यह ब्लास्ट हुआ था तो उस समय छह लोगों की मौत हुई थी। यह कहानी अनसुलझी रह गई इसलिए कि यह घटना किसने की, क्यों की, कैसे की इस पर हमेशा सवाल उठते रहेंगे और एक बात तो तय है कि मृतकों और घायलों को इंसाफ नहीं मिल पाया। इसलिए कि जिन्हें इसमें आरोपी बनाया गया था, वह बरी हो गए, सबूत के अभाव में बरी हो गए। यह मामला बहुत चर्चित था।
हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए प्रज्ञा ठाकुर ने बनाया था संगठन
अभिनव भारत नामक एक संस्था जिसकी संचालक प्रज्ञा ठाकुर और उनके साथी थे। उन पर यह आरोप लगा था कि उन्होंने हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए इस तरह की एक संगठन बनाया है और इस घटना को अंजाम दिया है। उसमें एक सैन्य अधिकारी जो बड़े सैन्य अधिकारी थे उन्हें भी इसमें आरोपी बनाया गया था। उनके साथ-साथ एक रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, समी कुलकर्णी शामिल है जिन्हें बरी कर दिया गया इस पूरे मामले में। अदालत ने जो अपना फैसला सुनाया उसमें कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की वकालत नहीं करता है। अदालत ने जिस तरह के सबूत न्यायालय में जांच एजेंसी ने जिस तरह के सबूत दिए हैं, उस पर अदालत ने उस पर शक जाहिर किया है। उस सबूत को पर्याप्त नहीं माना है और उन्होंने इस आधार पर आरोपियों को बरी कर दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई विश्वसनीय पुख्ता सबूत नहीं मिला है। इसलिए इन्हें बरी किया जाता है। पुलिस चाहे तो जो अनवांटेड अपराधी हैं इस पूरे मामले में उनके खिलाफ अलग से चार्जशीट दाखिल कर दें और अभी भी इस मामले में कुछ लोग वांटेड हैं जो जिस तक पुलिस नहीं पहुंच पाई है। इस प्रक्रिया के बारे में अगर मैं आपको बताऊं तो इसमें कोर्ट ने यह भी कहा था पहले कि मकोका कानून जो जिस सुप्रीम कोर्ट में इस पर याचिका लगाई गई थी। मकोका कानून लगाया गया था एटीएस की तरफ से स्थानीय महाराष्ट्र पुलिस की तरफ से जिसमें ये सुप्रीम कोर्ट ने इसको गलत ठहराया था। उसके बाद यूएपीए के तहत इस पर सुनवाई हुई थी और यूएपीए और आईपीसी की धाराओं के तहत इसमें सुनवाई हुई थी। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और उनके सहयोगी लंबे समय से जमानत पर था।
एटीएस कर रही थी जांच
इस इस पूरे मामले में इसमें जब पुलिस ने जब विस्फोट हुआ तो स्थानीय पुलिस ने इस पूरे मामले में जांच शुरू की। जांच बाद में एटीएस को सौंप दी गई। हेमंत हेमंत करकरे शहीद जो अफसर हैं जो मुंबई आतंकवादी घटना में जो शहीद हो गए थे उनकी टीम ने इस पर जांच की थी और जांच के दौरान वहां एक एलएमएल कंपनी की एक दोपहिया वाहन मिला था जिसमें यह कहा गया था कि विस्फोटक इसी में लाया गया और इसी में ब्लास्ट हुआ था। वो उस गाड़ी का नंबर फर्जी पाया गया था। उसका जो चेचिस है उसका नंबर भी बदला गया था। उसको मिटाया गया था। लेकिन साइंटिफिक ढंग से जब एटीएस ने उसकी जांच की तो जो चेचिस नंबर उसमें मिला था जांच में वो साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का वाहन था। उसके आधार पर ही एटीएस उनके उन तक पहुंची। उस समय वो जबलपुर में रहती थी। जबलपुर में अभिनव भारत नाम के एक संगठन को वहीं से वो संचालित करती थी। ढेर सारे संगठन उनके सदस्य थे और कई तरह की गतिविधियां वहां संगठन की वहां से देश भर में संचालित थी। उसमें पूछताछ के बाद एटीएस ने कई तरह के खुलासे किए थे और कर्नल पुरोहित तक भी पहुंची थी। कर्नल पुरोहित के बारे में भी यही था कि यह वह इस तरह के अभिनव भारत जैसे संगठन के साथ उनका जुड़ाव है और वह इस तरह की आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त है। लेकिन बाद में उन्हें बरी कर दिया गया। जमानत पर भी रिहा थे।
भोपाल की सांसद रहीं हैं साध्वी प्रज्ञा ठाकुर
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जैसा आप जानते हैं भोपाल की सांसद रही हैं। इस अदालती कारवाही के दौरान वो हिंदूवादी संगठनों का सबसे बडे प्रमुख चेहरों में शामिल हो गई थी। भोपाल में उन्होंने दिग्विजय सिंह को चुनाव हराया था और वह सांसद भी बनी थी। इस बार पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी। बीच में काफी चर्चा थी कि अदालत में सरकार ने मांग की है कि उन्हें सजा दी जाए। सुनवाई अप्रैल में पूरी हो चुकी थी। उस समय यह बहुत चर्चा में था लेकिन अंततः जो उम्मीद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर उनके समर्थक सत्ता पक्ष और अन्य लोग जो उम्मीद लगा रहे थे कि वो बरी होंगी अंतत वैसा हुआ और जो पीड़ित पक्ष है और दूसरा पक्ष है उसको जो आशंकाएं थी वो भी सच साबित हो गई। इसलिए कि उसे लगता था उसे इस पूरे मामले में जिस तरह से अदालती कारवाई हो रही है उसमें शायद ही आरोपियों को सजा हो। अगर इस मामले के बारे में हम बात करें तो पीछे जो सरकारी वकील इस मामले में थी उन्होंने भी गंभीर आरोप लगाए थे कि उन्हें दबाव बनाया जा रहा है कि इस मामले में आरोपियों की मदद करनी है। उन्होंने भी यह मीडिया की सुर्खियों में भी रहा है। जिस तरह से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जब गिरफ्तार हुई जबलपुर से उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उनके बहुत से साथियों को पुलिस ने राउंड अप किया था। एटीएस ने राउंड अप किया था। तब शिवराज सिंह चौहान की सरकार थी। शिवराज सिंह चौहान की सरकार की ओर से भी एटीएस को जांच में पूरा सहयोग किया गया था। उनके कई सहयोगियों से लगातार एटीएस ने पूछताछ की थी। उनकी गतिविधियों उनके उस घर में जहां वह जबलपुर में रहती थी उस घर में भी एटीएस ने बहुत ढेर सारे सबूत जुटाए थे और उनकी वो जिस तरह की गतिविधियां हैं उनकी उस पर एटीएस ने उस समय कारवाई की थी। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जिस तरह के भाषण देती थी उसको बहुत उनका भाषण बहुत तीखा एक पूरे एक वर्ग पर हमलावर रहती थी वो और लगातार वो उस तरह की गतिविधियां उनकी थी और उनके सहयोगी भी उसी तरह का प्रदर्शन करते रहते थे। एक मामले में वो एक उड़ीसा में एक साधु की हत्या हो जाने के बाद उन्होंने एक सभा एक सभा आयोजित की गई थी हिंदूवादी संगठनों की ओर से जिसमें वो भी शामिल हुई थी जहां वो हत्या की वकालत कर रही थी बाकायदा वो जब वो गिरफ्तार हुई तो वो वीडियो मीडिया में बहुत प्रसारित हुई था। ये इत्तेफाक है कि उस समय जो होम सेक्रेटरी थे जो बाद में भारतीय जनता पार्टी के सांसद भी हुए भारतीय जनता पार्टी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी थे। ये उस दौर में ये शब्द सामने आया था जिसको लेकर बहुत विवाद हुआ था।
अदालत ने क्या कहा
अदालत ने इस पूरे मामले में क्या कहा है वो भी आपको हम बताते हैं। कोर्ट ने कहा कि अहम गवाहों ने प्रोसीक्यूशन का समर्थन नहीं किया है। प्रोसीक्यूशन रचने की जो बैठक जो बैठकें बताई उसने उसे साबित करने में विफल रहा है। अदालत ने कहा कि स्पॉट पंचनामा जो बना है उसमें भी खामियां थी। डंप डाटा उपलब्ध नहीं था। घटना स्थल की बैरिकेडिंग नहीं की गई थी। इसलिए कोई निर्णायक निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। वाहन के चेस नंबर का जिस वाहन का अभी हम जिक्र कर रहे थे कि वाहन के चेस नंबर को मिटा दिया गया था। दोबारा रिस्टोर नहीं किया जा सकता। एटीएस का दावा था उसने रिस्टोर किया। उसमें वो गाड़ी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नाम से निकली। ये और यह गाड़ी उन्हीं की थी। बाद में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने बताया था कि वो गाड़ी वो बेच चुकी हैं। इसलिए इसे ठोस सबूत के तौर पर अदालत ने नहीं माना। कुछ मेडिकल प्रमाण पत्र भी अवैध चिकित्सों ने जारी किया है। ऐसा न्यायालय ने यह भी कहा है। जिन्होंने जिससे जिससे साबित नहीं हो सका है। सबूत उपलब्ध नहीं है कि आरडीएक्स लाया गया या बम असेंबल किया गया यह भी स्पष्ट नहीं है। बम वाली मोटरसाइकिल किसने खड़ी की जबकि इलाका रमजान में के चलते पहले से ही सील किया गया था। घटना के बाद की स्थिति में पत्थरबाजी की गई। नुकसान किसने पहुंचाया? पुलिस की बंदूक छीनने की घटनाएं इन पर कोई स्पष्ट सबूत नहीं है। साथ ही यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया कि बम वो जो दोपहिया वाहन था एलएमएल वो उसके अंदर से ब्लास्ट हुआ है या उसके बाहर से ब्लास्ट हुआ है। यह भी निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका है। और इस तरह की कई चीजों में न्यायालय ने इनहीं को आधार मानकर इस जांच को पर्याप्त नहीं माना। सबूत के अभाव में इन्हें बरी कर दिया।
सवाल उठते रहेंंगे कानून् व्यवस्था पर, पुलिस की जांच पर
अंततः आज उनके लिए एक अच्छी खबर है। वो एक राजनेता भी हैं। एक अच्छी खबर है। काफी बीमार भी हो गई थी। उनका इलाज भी लंबे समय तक चलता रहा। कई बार वह विवादों में भी रहती हैं। लेकिन आज उनके लिए एक अच्छी खबर है कि वह इस मामले से इस आरोप से बरी हो गई हैं। लेकिन अभी बहुत से सवाल हैं। पूरे जीवन ये सवाल उठते रहेंगे। कानून व्यवस्था पर, पुलिस की जांच पर, अदालत के फैसले पर बहुत तरह की समीक्षाएं होती रहेंगी वक्त के साथ। लेकिन आज का सच यही है कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और उनके साथी बरी हो गए।