ग्वायलियर। 
सड़कें विकास की बुनियाद मानी जाती हैं, लेकिन ग्वालियर जिले के एक गांव की तस्वीर कुछ और ही कहानी कह रही है। ग्राम किठौन्दा में सड़क के अभाव ने न केवल जनजीवन को प्रभावित किया है, बल्कि युवाओं की शादी तक मुश्किल बना दी है। गांव में लगभग 45 युवक अब भी अविवाहित हैं, जिनमें से कई चालीस की उम्र पार कर चुके हैं। वजह सिर्फ गांव तक पहुंचने का कोई ढंग का रास्ता नहीं है।
बारिश आते ही किठौन्दा गांव हो जाता है देश से अलग
1300 की आबादी वाले किठौन्दा गांव में करीब 150 परिवार रहते हैं। लेकिन हर साल बारिश के मौसम में यह गांव शेष दुनिया से कट जाता है। गांव से भितरवार जाने के दो रास्ते हैं, लेकिन दोनों ही या तो कच्चे हैं या जलभराव से बंद हो जाते हैं। एक रास्ता प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत ग्राम किठौन्दा होते हुए बनाया गया था, लेकिन वह इतना लंबा और अव्यवस्थित है कि लोगों को बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है।
‘शादी के लिए आया रिश्ता सड़क देखकर लौट जाता है’
एक युवक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मेरे जैसे कई युवक गांव में कुंवारे हैं। कोई रिश्ता लेकर आता भी है, तो गांव की हालत देखकर साफ मना कर देता है। लोग कहते हैं कि लड़की को ऐसी जगह नहीं भेज सकते जहां एम्बुलेंस न पहुंच सके, स्कूल दूर हो और सड़क तक न हो।
स्वास्थ्य सेवाएं ठप, स्कूल जाना भी सपना’
गांव के बुजुर्ग निवासी हरिओम कुशवाह ने बताया कि बारिश में तीन महीने तक शहर से कोई संपर्क नहीं रहता। बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, बीमारों को अस्पताल नहीं ले जाया जा सकता और कई बार समय पर इलाज न मिलने के कारण मौतें भी हो चुकी हैं। उन्होंने कहा कि गांव में सड़क का न होना अब सिर्फ सुविधा की बात नहीं, बल्कि जीवन-मरण का सवाल बन चुका है।
2023 में किया था चुनाव बहिष्कार, मिला सिर्फ आश्वासन
ग्रामीणों ने अपनी समस्या को लेकर 2023 के विधानसभा चुनाव का बहिष्कार भी किया था। तब नेताओं और अधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि जल्द ही सड़क और पुलिया का निर्माण होगा। लेकिन एक साल बाद भी वह वादा अधूरा ही है।
जलसत्याग्रह के जरिए जताया विरोध, अफसर मौके पर पहुंचे
बीते रोज गांव के कई लोगों ने रास्ते में भरे पानी में खड़े होकर जलसत्याग्रह किया। उनका यह विरोध प्रशासन की उदासीनता के खिलाफ था। आंदोलन की खबर मिलते ही ग्राम सरपंच और जनपद सीईओ मौके पर पहुंचे और ग्रामीणों को एक बार फिर सड़क निर्माण का भरोसा दिया। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि अब भरोसे से ज्यादा उन्हें काम चाहिए।