आखिर कहां गया दिलीप पाटीदार न एटीएस को पता न स्थानीय पुलिस को
भोपाल, सबकी खबर।
मालेगांव बम ब्लास्ट का फैसला तो आ गया है। लेकिन यदि वाकई कोई लौटकर आज तक घर नहीं आया है तो वह है दिलीप पाटीदार। दिलीप पाटीदार शाजापुर के धुपाड़ा गांव के रहने वाले हैं और उन्हें मालेगांव बम ब्लास्ट के आरोप में एटीएस ने उठाया था। लेकिन आज तक दिलीप का कोई अता-पता नहीं है। एटीएस का कहना है कि उन्होंने उसे छोड़ दिया था। लेकिन दिलीप आज तक घर नहीं लौटा है। उनकी पत्नी पद्मा और उनका बेटा हिमांशु आज भी शाजापुर के दोपाड़ा गांव में दरवाजे पर खड़े होकर उनका इंतजार कर रहे हैं। यह इतनी दर्दनाक कहानी है कि शाजापुर के रहने वाले दिलीप पाटीदार अपने परिवार के भरण पोषण के लिए इंदौर आ गए थे यहां कनाडिया रोड की शांति विहार कॉलोनी में किराए के घर में रहते थे और वहां इलेक्ट्रिशियन का काम करते थे। मालेगांव बम विस्फोट के बाद जो एटीएस महाराष्ट्र ने कई लोगों को उठाया। इसमें दिलीप को भी उठाया था। दिलीप पाटीदार को उठाने के बाद से लेकर आज तक पूरे 17 साल हो गए। यह परिवार दिलीप को ढूंढता फिर रहा है। आज तक कोई बताने को तैयार नहीं है। मध्य प्रदेश पुलिस, महाराष्ट्र एटीएस या भारत सरकार की कोई एजेंसी यह बताने को तैयार नहीं है कि दिलीप पाटीदार का हुआ क्या? जिस दिन एटीएस महाराष्ट्र उन्हें घर से उठा के ले गई थी, उस दिन इनका बेटा हिमांशु मात्र 3 साल का था। आज 20 साल का है और सरकार से सवाल पूछ रहा है कि मेरे पिता कहां है? मेरे पिता कब आएंगे? मालेगांव का फैसला तो आ गया। मेरे पिता कब आएंगे? आज उसकी मूछे आ गई हैं। आज बड़ा हो रहा है और 20 साल का हो गया है सरकार से आंखों में आंखें डाल के पूछ रहा है कि मालेगांव का फैसला आ गया है। मेरे पिता कब आएंगे?सरकार से गुहार लगा रहा है सरकार से यही मांग है कि कुछ हमारे लिए मदद करें। पिताजी को ढूंढने में मदद करें। पिताजी तो मेरे ले गए थे तो उनको कुछ पता नहीं था उस केस में इन्वॉल्वमेंट नहीं बताया कि इसमें कोई इन्वॉल्वमेंट है क्या? बाकी एटीएस रात को ले गई। उसके बाद में कोई पता नहीं चला और वहां पर पूछा तो बोलते हैं छोड़ दिया। 20 साल की उम्र है लेकिन पिता की प्रतीक्षा है। और एक और भावुक दृश्य तो तब है जब पद्मा पाटीदार जो दिलीप पाटीदार की पत्नी है। वे आज भी 17 साल से मंगलसूत्र इसलिए पहन रही हैं कि उन्हें पूरा भरोसा है। आज नहीं तो कल उनके पति एक दिन जरूर लौटेंगे। वे भी भावुक हैं। यह फैसला आ गया और फैसले में लोग बरी हो गए। लेकिन दिलीप कहां है? दिलीप पाटीदार कहां है? आज कुछ मीडिया के लोगों ने उनसे बात की है। उनका कहना था कि 2008 में पुलिस वाले आए वाले आए थे रात और उनको उठा के ले गए। उसके बाद में हम थाने गए। थाने जाने के बाद हमने पूछा कि कहां आए? वो कहां ले गए? तो उन्होंने बोला थाने वालों ने कहा हम तो लेके नहीं आए। तो बोले कि हमने बोला कि आप ही के यहां ले आए हैं एक तो बोले कि नहीं यहां ले नहीं आए तो बोले कि आप कलेक्टर कार्यालय जाओ तो भैया बोले कि कलेक्टर कार्यालय तो हम सुबह जाएंगे पर अभी आप इसकी रिपोर्ट लिखो उनकी इसके पति को कौन उठा के ले गया तो फिर वो भैया बोले उनको तो पुलिस लेके गई तो हम घर आ गए घर आने के बाद में फिर पापा लोग नहीं आ गए थे तो मैं तो गांव चली गई थी उसके बाद फिर केस लगाया केस चला फिर क्या बताया मतलब कितना टाइम हो गया और पुलिस ने क्या बताया? बोले के हमें वो गवाही के लिए लेके गए थे तो आइडेंटिटी कार्ड के लिए छोड़ दिया। इस घर में दिलीप के एक बड़े भाई भी थे। पिता भी थे। ये लोग कोर्ट कचहरी कर कर के 17 साल हो गए इनको। बड़े भाई का भी निधन हो गया। पिता का भी निधन हो गया। परसों 1 अगस्त थी और इनका परिवार अपने दादाजी यानी कि दिलीप के पिता की पहली पुण्यतिथि मना रहा था। तभी टीवी पर खबर चलना शुरू हुई कि माले गांव में सभी आरोपियों को निर्दोष साबित कर दिया गया है। सभी आरोपी निर्दोष हो गए हैं। उन्हें सबको राह राहत मिल गई है। सोचिए सबको राहत मिल गई। इस परिवार को राहत कब मिलेगी। और आज भी दिलीप की पत्नी और दिलीप का बेटा अपने ही दरवाजे पर खड़े होकर उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। देखते हैं इनकी प्रतीक्षा कब पूरी होगी। हम जो भी खबर होगी फिर आपको बताएंगे। लेकिन पता नहीं क्यों देश भर में कहीं भी कोई भी आतंकी वारदात होती है तो अधिकांश मामलों में यह शाजापुर का नाम क्यों आता है।