भोपाल, सबकी खबर। 

मध्यप्रदेश की 9 करोड की जनता इस पर सोचने पर विवश जरूर होना चाहिए दरअसल मद्दप्रदेश में 17 विश्वविद्यालाय है जो सरकार द्वारा संचालित है और सरकार के अधिन आते हैं या कुलपति नियुक्त करने से लेकर तमाम प्रशासिक चीजें  मद्दप्रदेश के राज्यपाल के अधिन रहती हैं क्योंकि यह सरकारी विश्वविद्यालाय हैं और इन विश्व विद्याललों में पढ़ाने के लिए  प्राध्यापक नहीं है लगभग 70-75 प्रतिस्थत पद खाली पड़े हैं। लेकिन दूसरी खबर यह है कि मद्द प्रदेश में विधायकों और पूर्व विधायकों का बेतन और पूर्व विधायकों की पेंशन बंपर तरीके से बढ़ाई जा रही है एक और हमारे पास प्राध्यापक नहीं है पढ़ाने के लिए 17 विश्व विद्यालय में 25 प्रतिशत प्राध्यापक  है 75 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं लेकिन एक ऐसा प्रस्ताव जिस पर सत्तापक्ष विपक्ष दोनों के विधायक आंख में पट्टी  बांध के केवल हाथ उपर करेंगे और वह प्रस्ताव पारित होगा और ये प्रस्ताव है प्रदेश में विधायकों के वेतन और पूर्व विधायकों के पेंशन बढाने को लेकर है। एक तरफ जहां 17 विश्वविद्यालयों में जो पद खाली हैं। उमसें भी पांच विवि ऐसे हैं जिनमें एक भी सहायक प्राद्यापक नहीं है। सोचने वाली बात हैं यहां पढाई कैसे हो रही होगी। क्या हो रहा हो ग्रामीण अंचल के बच्चों का जिन्होंने यहा एडमिशन लिया होगा।  
मुख्यमंत्री के शहर में भी शिक्षा के हाल बेहाल 
उच्च शिक्षा  विभाग की इतनी दुर्गती कोई देखने को तैयार नहीं है वह तो विधासनभा में सोमवार को एक सवाल आया संजीव उइ्के और शर्मसार सरकार हो गई। इसमें कितने मंत्री शर्मसार हुए और उच्च शिक्षा मंत्री ने क्या कदम उठाए यह तो सरकार ही बता सकती है। फिलहाल हम आपको विस्तार से बताते हैं कि कहां कितने पद खाली हैं और कितने भरे है। पहला है रानी दुर्गावती विश्वद्यालय जबलपुर सहायक प्राध्यापक के 74 पद स्वीकृत हैं 17 भरे  हैं 57 खाली है अन्दाज तो लगाइए 74 में से 17 भरे हैं 57 खाली है पढ़ाई कैसे हो रही है दूसरा विक्रम विश्वद्यालय उज्जेन जहां से  हमारे माननीय है मुख्यमंत्री जी आते हैं और उच्च शिक्षा मंत्री भी रहे हैं यहा 85 पद सहायक प्राध्यापक के 29 भरे हुए हैं 56 खाली हैं। 60 प्रतिशत पद खाली पड़े हुए हैं। लानत है जिस शहर से मुख्यमंत्री जी आते हैं उनकी कॉंस्टेंसी और यह विश्वविद्यालय है जिसके परिसर में अब उज्जेन में मुख्यमंत्री जी ने अपना निवास बनाया है अपना घर बनाया है। उस विवि की यह दुर्दशा है। राजा शंकर शाह विवि छिंदवाडा में 100 पद है लेकिन यहां भी पद पर कोई प्राध्यापक नहीं है सारे पद खाली पड़े हैं। क्रांतिवीर तात्या टोपे विवि गुना 80 पद उसमें हैं एक पर भी एक भी सहायक प्रध्यापक नहीं है। पंडित एसएन शुक्ला विश्वविद्ध्यालय शहडोल स्वीकृत पद 68 में से 24 भरे हुए हैं 44 खाली पड़े हैं।  क्रांतिसूर्य टंटया भील  विश्वविद्यालय खरगोन 30 पद स्वीकृत एक पर भी एक भी सहायक प्राध्यापक नहीं है पढ़ाई कैसे हो रही होगी कि मध्यप्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय भोपाल 34 पद स्वीकृम हैं केवल चार सहायक प्राध्यापक हैं 30 पद खाली पड़े हैं। अब अवधेश प्रताप विश्वविद्यालय  रीवा विंध्य का एक बहुत बड़ा प्राचीन विश्वविद्यालय है 35 पद है यहां जरा सम्मानजनक पद भरे हैं 22 मात्र 13 पद खाली है । एक मात्र रीवा है जहां थोड़े बहुत देख रहे हैं बाकी सब जगह तो हालत बहुत खराब है देवी अहिल्या विवि इंदौर सबसे साफ शहर यहां 73 पद है 60 भरे गए 13 खाली है यह भी एक सम्माजनक कहा जा सकता है। अटल बिहारी हिंदी विश्व विद्यालय भोपाल 18 पद हैं 13 पद भरे हैं 5 खाली है। महात्मा गांधी चित्रकुट्र ग्रामोदय विश्व विद्यालय चित्रकुट्र 110  प्रध्यापक के पद है 47 भरे हैं 63 खाली है। महर्षी ​पणिनी संस्कृत एवं वैदिक विवि उज्जैन यहां 15 पद स्वीकृत है 7 भरे है 8 खाली है आधे से ज्यादा खाली है। महाराजा  छत्रसाल बुंदेलखंड विवि छतरपूर 80 पद स्वीकृत हैं 80 की 80 खाली हैं एक भी सहायक प्राध्यापक नहीं है। रानी अवंति भाई लोधी विवि सागर 80 पद हैं 80 की 80 खाली हैं एक भी नहीं है  । कि बरकतउल्ला विवि भोपाल 61 पद हैं 28 भरे हैं 33 खाली पड़े हैं। जीवाजी विवि ग्वालियर ज्योतिरादित्य सिंधिया के दादाजी के नाम से दादाजी के भी पिताजी 58 पद है। 20 भरे हैं 38 खाली हैं। यहां से हमारे स्पीकर साहब आते हैं नेताओं की टोली इसी शहर में लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं है और अंतिम डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू 68 पद हैं कुल 5 भरे हैं 63 खाली हैं। अब अंदाज लगाईए कि कैसे पढ़ाई हो रही होगी क्यों नहीं भरे जा रहे हैं कोई जवाब नहीं है। 
विधायकों का फोकस खुद का वेतन बढाने पर 
अब दूसरे प्रस्ताव की की ओर चलते है। हमारी शिक्षा का यह हाल है लेकिन हमारा सारा फोकस फोकस है विधायकों की जेब कैसे भर सकते हैं नए पुराने विधायको को कैसे ज्यादा से ज्यादा लाभ दे सकते है। हालांकि यह अलग बात हैं कि 2016 के बाद से विधायकों की तनख्वाह और पेंशन नहीं बढ़ी है लेकिन क्या इसनी बढ़ाई जाना चाहिए क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि उनको हर दो साल में तीन साल में औटोमेटिक एक परसेंटेज तय कर देना चाहिए लेकिन वह नहीं करती सरकार एक  कमेटी बनाई गई उसका नाम रखा गया था विधायक सुविधा समिति बनाई हुई है उस कमेटी  को यह जिम्मा सौपा था कि आप अन्य राज्यों के विधायकों के वेतन भत्तों का अध्ययन और एक प्रस्ताव दें कि हमें कितनी बढ़ोतरी करना चाहिए इस कमेटी की रिपोर्ट सोमवार को स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर को सौंप दी गई है और उन्होंने यह यह वित्त विभाग को दे दी है। आने वाले दिनों में हो सकता है इसी सत्र  में सब लोग हाथ खड़े करेंगे क्योंकि सबका भला है सदन में बैठे सत्ता पक्ष के विधायक पूर्व विधायक सबका भला है सब हाथ खड़े करेंगे। अभी जो विधयकों को मिल रहे हैं वह 110,000 रुपए हर महीने मिलते हैं अब इसे बढ़ाकर एक लाख 75,000 रुपए किया जा  रहा है अब आप निर्णय जनता को करना है कि क्या यह उचित है नहीं है 65,000 रुपए हर महीने वेतन बढ़ाया जा रहा है एक साथ इसके अलावा एक प्रस्ताह और है कि विधायकों का क्षेत्र विकास निधि है इस समय ढाई करोड़ रुपए प्रतिवर्ष। इसे बढ़ाकर पांच करोड़  रुपए किया जा रहा है और विधायकों को सुविधा निधि जो 75 लाख मिलते हैं उसे बढ़ा कर एक करोड किया जा रहा है। अब पूर्व विधायकों की बात कर लेते हैं पूर्व विधायकों को इस समय 35000 पेंशन मिलती है उसे बढ़ा कर सीधा 75000 करने का प्रस्तवाव हैं यानी सीधे 40000 की बढोतरी हो रही है आधे से ज्यादा दुगने से ज्यादा किया जाएगा। क्योंकि पूर्व विधायक कहते हैं कि हम बीमार रहते हैं हमारा घर नहीं चल पा रहा है तो क्या आप जनप्रतिनिधि इसलिए बने थे। फिहहाल इस मुद्दे पर निर्णय जनता को करना है और एक चीज और विधायकों ने मांगी है कि उन्हें जो सहायक दिया गया है वो सरकारी कर्मचारी है वो कभी भी छुट्टी लेता है तो काम नहीं कर पाते हैे तो एक आउटसोर्स से कर्मचारी और दे दिया जाए जो  इनके सहायक के रूप में काम करे। सबसे अहम बात जो सोचने लायक हैं जहां एक और  हमारे सरकारी विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्याक के पद खाली पड़े हैं पद पढ़ाई प्रभावित हो रही है दूसरी ओर हमारे जनप्रति​निध जन सेवक उनका पूरा फोकस खुद की तनखा बढ़ाने पर लगा हुआ है।