सुनी सुनाई : मप्र के यह नेता उप राष्ट्रपति न बन जाएं, इसलिए पुरानी फाइल दौड़ने लगी!
दरअसल मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के एक पुराने और मंजे हुए नेता हैं जिनका नाम पिछली बार राष्ट्रपति के लिए चला था। लेकिन दुर्भाग्य से उनकी एक फाइल आगे आड़े आ गई और वे राष्ट्रपति की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए। नरेंद्र मोदी ने उन पर कृपा की और एक राज्य का राज्यपाल भी बनाया। लेकिन अब उपराष्ट्रपति की कुर्सी खाली है और इन नेता जी का नाम फिर उपराष्ट्रपति के लिए चल रहा है। कुछ जगह छपा भी है। लेकिन इन नेताजी के आड़े फिर वही फाइल आ गई है। मैं आपको बता दूं कि पिछले 8—10 दिन से जब से इन नेताजी का नाम उपराष्ट्रपति के लिए चला है। तब से वह फाइल फिर दौड़ने लगी हैं। पुरानी फाइलें निकाली जा रही हैं। दरअसल यह नेता जी इतने बड़े नेता हैं, पुराने नेता हैं कि मध्य प्रदेश में विधायक रहे हैं, सांसद रहे हैं। मध्य प्रदेश में मतलब महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे हैं। केंद्र में मंत्री रहे हैं। यह तमाम महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भारतीय जनता पार्टी संगठन में सर्वोच्च बॉडी में रहे हैं। तमाम सारे महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। लेकिन छोटा सा लालच छोटा सा लालच उन्हें राष्ट्रपति की कुर्सी से दूर कर दिया था। और यह लालच क्या था? इन नेता जी को पूर्व विधायक के रूप में पेंशन मिल रही है। अब राज्यपाल के रूप में भी मिलेगी। तो यह नेता जी को जब इतनी पेंशन मिल रही है तो एक और पेंशन की जरूरत थी और वह पेंशन थी मीसाबंदी पेंशन जिसका पहले नाम था लोकनायक जयप्रकाश सम्मान निधि और अब नाम हो गया है लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि। यह मध्य प्रदेश में इसके जो नियम है 1975 से 1977 25 जून 1975 से 1977 जब तक आपातकाल रहा है तब तक के बीच में यदि भारतीय जनता पार्टी संघ या उनसे जुड़ी विचारधारा का कोई व्यक्ति 30 दिन जेल में रहा है तो उसे जीवन भर पेंशन का अधिकार तो नेताजी की भी लालच आ गया नेता जी को और उन्होंने एक पत्र लिख दिया कि मैं 14 नवंबर 1975 76 से 6 जनवरी 1976 यानी 45 दिन तक जेल में था। अब इस उनके पत्र की जांच हुई। जब इन्हें यह पत्र लिखा था तब यह केंद्र में मंत्री थे। नेताजी के पत्र की जांच हुई। आप सोचिए अब केंद्र में मंत्री थे। इतनी सारी सुख सुविधाएं आपको वैसे ही मिल रही हैं। आपको तीन पेंशन वैसे ही मिलने वाली है। चौथी पेंशन की जरूरत क्या थी? लेकिन नेता जी का लालच था। तो नेता जी ने चिट्ठी लिख दी। चिट्ठी लिखी तो कलेक्टर ने जांच की और जेल अधीक्षक के पूरे अभिलेखागार से कागज निकाले गए। तो पता चला कि यह नेताजी 23 दिसंबर 2075 को गिरफ्तार किए गए थे और 6 जनवरी 76 को छोड़ दिए गए। यानी कुल 13 दिन जेल में रहे हैं। अब आप जब 13 दिन जेल में रहे तो आप अपात्र हो गए। लेकिन आपका यह लालच आपको ले डूबा। आपको राष्ट्रपति की कुर्सी तक नहीं पहुंचने दिया। उस समय जब इनका नाम राष्ट्रपति पद के लिए चल रहा था तब यही वाली फाइलें भेजी गई। यहां से दिल्ली तक आईबी ने भी भेजी के साहब ये तो बड़े लालची हैं। ये कल मामला आएगा तो समय इनका नाम कट गया था और रामनाथ कोविंद देश के राष्ट्रपति बन गए थे। अभी जब जगदीप धनखड का इस्तीफा हुआ है उसके बाद उपराष्ट्रपति के लिए योग्यता के मामले में हर तरह से यह नेता जी बड़े मुफीद हैं। वे नरेंद्र मोदी के भी पसंद के माने जाते हैं। लेकिन जैसे ही इनका नाम अखबारों में आया, मीडिया में आया तो इनके विरोधियों ने पुरानी फाइल फिल निकाल ली। फिर वो भेजी जा रही है इधर से उधर। मुझे भी तीन कागज भेजे गए हैं। तो कुल मिला के कभी-कभी एक छोटा सा जो है लालच है वो बड़ा नुकसान करता है।