भोपाल/सागर, सबकी खबर।
इस समय भारतीय जनता पार्टी की गुटबाजी का नया केंद्र उभरकर सामने आ रहा है और वह हैं सागर। यहां विधायक, मंत्री सब आपस में गुत्थमगुत्था हुए जा रह है। अब एक और नई विधायक भी आने वाली हैं। इनकी भी चर्चा जोरों पर हैं वैसे यूं तो वह भारतीय जनता पार्टी आ गई है लेकिन अभी ठप्पा  कांग्रेस का ही लगा है। लेकिन आने वाले  वक्त में वो क्या करने वाली हैं, कैसे  करने वाली है यह समय और उपचुनाव की बताएगा। दूसरे नेता गोविंद सिंह जो कांग्रेस से आए हैं। लेकिन उनकी भूपेंद्र सिंह से अदावत है और अन्य लोग भी आपस में एक दूसरे से गुत्थमगुत्था है। चाहे शैलेंद्र जैन हो या बृज बिहारी पटेरिया। ऐसा प्रतीत होता है कि इनको नसीहतों  का असर नहीं हो रहा है। इसलिए केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश नेतृत्व लगातार नसीहत देता  है। लेकिन विधानसभा सत्र के दौर में भी इनकी गुटबाजियां सुर्खियों में है। इसका कोई अंत होता दिख नहीं रहा है। 
खंडेलवाल के सामने सागर सबसे बडी चुनौती
नए प्रदेश अध्यक्ष आने के बाद उनके सामने जो चुनौतियां हैं उनमें एक बड़ी चुनौती है। सागर जिले में भारतीय जनता पार्टी में जो गुटबाजी है। अब यह गुटबाजी नहीं है। यह मतभेद नहीं है। अब ये मनभेद में बदल चुके हैं। अब जिस तरह से संगठन तक झगड़े चल रहे हैं और सड़क से  लेके सदन तक झगड़े दिख रहे हैं। दो-तीन विधायक  ऐसे हैं जो आप कह सकते हो कि वह आलू की  तरह हो गए हैं। वह सबसे सबकी मतलब जाके मिल सब में जाके मिल रहे हैं।  सागर में सात विधायक बीजेपी के बैनर पर जीत के आए हैं। एक बीना की विधायिका है जो कांग्रेस के बैनर पे आ गई है। उनका शरीर कहीं है, आत्मा कहीं है, विचार कहीं है, भावना कहीं है तो वो आज ना बीजेपी की है, ना कांग्रेस की है। फिलहाल  आज हम यह बात कर रहे हैं कि सागर में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों के झगड़े अब आप देखेंगे यह शायद मध्य प्रदेश का  पहला जिला है जिसमें लगभग आधे 40% विधायक  कांग्रेस से आकर बीजेपी में शामिल हुए हैं। देवरी में ब्रिज बिहारी पटेरिया विधायक बीजेपी के बैनर पर चुने गए हैं। लेकिन आए कांग्रेस से हैं। सुरखी की बात करें गोविंद राजपूत मंत्री हैं मध्य प्रदेश में। यह बेशक चुने गए बीजेपी के बैनर पे आए कांग्रेस से हैं। हम बात करें निर्मला सप्रे भी यही स्थिति है कि भाई कांग्रेस से में ही चुनी गई है  लेकिन वो बीजेपी के साथ आजकल पिंगे बढ़ा  रही हैं। अब हम बात करते हैं गुटबाजी की।  दरअसल इस समय बहुत सारे नेताओं के निशाने पर आ गए हैं भूपेंद्र सिंह । भूपेंद्र सिंह  जो इस समय खुरई से विधायक हैं, सागर जिले से हैं और गोविंद राजपूत और  भूपेंद्र सिंह जी का जी अदावत है वो अब  किसी से छुपी नहीं है। विगत दिनों मालथौन में एक आदिवासी  युवक ने सुसाइड किया था यह मामला काफी सुर्खियों में रहा था। तो भूपेंद्र सिंह के खिलाफ वहां बहुत बड़ा माहौल बन गया आज की तारीख में। यद्यपि वे योद्धा हैं। लड़ रहे हैं वे। आज उन्होंने हाउस में भी कुछ मुद्दे उठाए हैं विधानसभा में। एक ओर गोविंद सिंह और भूपेंद्र सिंह के झगड़े। दूसरी ओर ब्रज बिहारी पटेरिया और शैलेंद्र जैन के झगड़े। 
अब शैलेंद्र जैन और बृजबिहारी पटेरिया में ठनी
आज का यदि दैनिक भास्कर उठाएंगे आप ऑल एडिशन प्रशासनिक पेज की जो लीड खबर है वह भी सागर से आई है। वहां बृज बिहारी पटेरिया ने कहा है कि मेरे हाथ बांध दिए गए हैं। वहां नगर पालिका भ्रष्ट है। अब यह नगर पालिका कोई विपक्ष की तो है नहीं। यह नगर पालिका बीजेपी की है और भारतीय जनता पार्टी के नगर पालिका के लोगों को समर्थन शैलेंद्र जैन का है। तो विधायक उसका विरोध कर रहे हैं। यानी सागर में बीजेपी ही बीजेपी से लड़ रही है। बीजेपी ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल के बैठे हैं। भारतीय जनता पार्टी की यह गुटबाजी कहां खत्म होगी? अब हम बात कर लेते हैं निर्मला सप्रे की इनका यह कहना है कि मैं मई 2024 में एक शर्त पर बीजेपी में आई थी और वो शर्त थी बीना को जिला बनाने की। लेकिन जैसे ही उन्होंने मुख्यमंत्री के सामने जिला बनाने की बात की वैसे ही खुरई में आंदोलन शुरू हो गया जिला बनने का। भूपेंद्र सिंह ने कहा कि हम जिला बनाएंगे खुरई को। खुरई जिला बनना चाहिए। तो ये दोनों के विवाद में आज तक न खुरई बना ना बीना बना। अब वो उनको मालूम है निर्मला सप्रे को यदि बीना को जिला बनाए बगैर वो उपचुनाव में उतरती हैं तो उनके जीत की कोई संभावना नहीं है। लोग नाराज बैठे हुए हैं। तो यह जो झगड़े हैं सागर के यह निश्चित तौर पे नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए चुनौती हैं। क्योंकि पुराने जो संगठन महामंत्री है वो तो थक गए थे और वो मतलब हितानंद शर्मा थक गए और उन्होंने चुप्पी साध ली। अब जो होगा देखा जाएगा। सागर के झगड़े अपने हालातों पर छोड़ दिए गए। पुराने अध्यक्ष वीडी शर्मा पर भी भूपेंद्र सिंह ने कुछ निशाने साधे थे उस पे। सागर में एक बड़ी समस्या हैं सागर में जो भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं वो सीनियर हैं। अब गोपाल भार्गव नौ बार के हैं। मध्य प्रदेश में उनके आसपास का कोई नेता नहीं है। इतने सीनियर हैं वो। तो आप कुछ कह नहीं सकते। इसी प्रकार भूपेंद्र सिंह वो खुद ही मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष मटेरियल रहे। उनका नाम चलता रहा इन पदों के लिए। सागर में चाहे भूपेंद्र सिंह हो, शैलेंद्र जैन हो, गोपाल भार्गव हो, प्रदीप लारिया हो, यह इतने सीनियर विधायक हैं संगठन के लोग भी इनसे ऊंची आवाज में बात नहीं कर पा रहे हैं। हां, हालांकि सभी आपस मेे लड़ रहे हैं। अभी तो आपने सिर्फ यह विधायकों की बात की और एक जगह नगर पालिका का जिक्र किया। जिला अध्यक्ष से भी मतभेद है। श्याम तिवारी जो हैं उनसे भी मतभेद है। यहां मेयर को बुलाया गया था। बाकायदा उन्होंने हिदायत भी दी गई थी। देखिए इस सबके बावजूद भी वहां कांग्रेस तो नजर नहीं आती। जी। वहां जो कुछ है वह बीजेपी है। यह बात सही है। 
विधायकों के सामने भी संगठन भी हो रहा बौना 
इस सबके बावजूद भी वहां कांग्रेस तो नजर नहीं आती। जी। वहां जो कुछ है वह बीजेपी है। यह बात सही है। दरअसल  जब आठ विधायक में से पांच इतने बड़े हो जो प्रदेश अध्यक्ष के भी उनके सामने खड़े हो जाएं। इतने सीनियर हो तब जिला अध्यक्ष की क्या हिम्मत है कि वो कुछ कर लें। 32 दांतों में जो जीभ की स्थिति होती है ना वैसे सागर में आठ विधायकों के बीच में एक जिला अध्यक्ष की हो गई है। जिला अध्यक्ष बिल्कुल तलवार की धारपर चलने वाला है। वो तो गौरव सिरोटिया का जो पहले वो अध्यक्ष थे युवा थे वो कभी इधर कभी उधर कैसे भी कैसे भी उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया और अब तो निगम अध्यक्ष के लिए दावेदारी कर रहे हैं। भोपाल में है। लेकिन श्याम तिवारी इस समय हैं। कोशिश वो पूरी कर रहे हैं। श्याम तिवारी अध्यक्ष कम और पोस्टमैन ज्यादा बन गए हैं। वहां के विवादों को भोपाल तक पहुंचाने का काम उनके पास रह गया है। रोज विवाद होते हैं। रोज कोई ना कोई नया आफत होती है। श्याम तिवारी गाड़ी उठाते हैं। अपने दो समर्थकों को बिठाते हैं। भोपाल आते हैं। संगठन मंत्री के कान में बताते हैं। प्रदेश अध्यक्ष को बताते हैं। वापस सागर जाते हैं। फिर वही नया विवाद, फिर भोपाल आना। अब बेचारे वो करे तो करें क्या? नए अध्यक्ष के लिए वाकई बहुत बहुत बड़ी समस्या है। सागर में जातिगत समीकरण बहुत ऐसे उलझे हुए हैं। सागर में विधायक बहुत वरिष्ठ हैं और सब अहम की लड़ाई लड़ रहे हैं और ऐसा नहीं है। यह भारतीय जनता पार्टी है, अनुशासित पार्टी है। जिस दिन भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने डंडा उठा लिया, तो समझ लीजिए कि एक आपकी सीनियरिटी का लिहाज किया जा रहा है तो आप आउट ऑफ कंट्रोल हो गए हैं। लेकिन आप जानते हो हम जानते हैं कि जिस भारतीय जनता पार्टी ने संघ के तत्कालीन अध्यक्ष बलराज मधोक को एक बिल्कुल अकेला छोड़ दिया। एक कर दिया था। क्या हालत कर दी थी बलराज मधोक की? क्या हालत आज लालकृष्ण आडवाणी की है? क्या हालत आज पार्टी के बहुत सारे नेता हम पहले सूची बता चुके हैं फिर से पूरी तो आप सोचिए कि आज नहीं तो कल आपको भी  मार्गदर्शक मंडल में जाना है आज आप लोग सब मिलके काम करेंगे संगठन के लिए काम करेंगे तो यह पार्टी का कद बढ़ेगा आपस में  लड़ेंगे तो यही होगा मीडिया खबर बनाएगा।  
विवाद की असली जड़ , 8 विधायक और सिर्फ एक मंत्री
एक बात यह भी गौर करने लायक है कि जिस गोविंद राजपूत से ये लोग जिंदगी भर लड़ते रहे। 30 साल तक गोविंद  राजपूत से ये लोग लड़ते रहे। और आज जब सरकार बनी तो गोविंद राजपूत मंत्री हैं और  बाकी सब विधायक बने बैठे हुए हैं। अब कान में मुख्यमंत्री जी धीरे से बोल देते हैं। भूपेंद्र थोड़ा शांत रहना। मैं मंत्री बना दूंगा। गोपाल भार्गव कहते यार जरा शांत रहना मंत्री बना दूंगा। तो यह जो लॉलीपॉप है वह लॉलीपॉप से कब तक काम चलेगा?  अब विधायक चाहते हैं कि अब कम से कम सागर में आठ विधायक हैं तो कम से कम दो मंत्री तो बनाइए आप। बड़े-बड़े जो छोटे-छोटे नगरों से दो-दो मंत्री आ गए हैं। सागर जैसे महानगर से  संभागीय मुख्यालय से आठ विधायकों के बीच में से ये एक मंत्री हैं और वो मंत्री भी  वो हैं जिनसे इन्होंने 30 साल तक लड़ाई  लड़ी है। तो यह जो दर्द है वो दर्द दिखाई  तो दे रहा है। और यह कारण भी यही है। यदि  आप गोविंद राजपूत के साथ-साथ गोपाल भार्गव , भूपेश सिंह  या प्रदीप लारिया इनमें  से एक को बनाएंगे तो मुझे लगता है कि कुछ  बैलेंस जरूर होगा।  चेक एंड बैलेंस भी हो जाएगा। निर्मला सप्रे को लेकर भी बहुत तरह की चीजें हैं। उनके आने को लेकर भी बहुत तरह का विवाद है,  अंदरूनी तनाव है, अंदरूनी दबाव है। बहुत तरह की चीजें हैं। और निर्मला सपरे के काम  करने के तरीके को लेकर भी कहीं ना कहीं  पार्टी में असंतोष है। तो, क्या लगता है?  यह भी एक वजह है कहीं ना कहीं इस टकराहटकी कि वह निर्मला सपरे को भी कोई हवा दे देता है। फिर निर्मला सप्रे के पीछे भी  शह और मात का खेल इस तरह से चलता है।