देश के उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ क्यों हटे! आखिर कैसे एक समाजवादी मोदीवादी हो गया कुछ तो गडबड जरूर है
नई दिल्ली/भोपाल, सबकी खबर।
देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड सुर्खियों में रहते हैं। पश्चिम बंगाल का मसला हो, सदन में कारवाही का मामला हो या किसानों पर बयान देना हो वो हमेशा सुर्खियों में और विवादों में भी रहते हैं। उन्होंने यहां तक सुप्रीम कोर्ट को भी आड़े हाथ ले लिया था। अब उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। यह सुर्खियों में है और चर्चाओं में भी है। अचानक उपराष्ट्रपति जो जिन्होंने दिन भर काम किया। अगले दिन का कार्यक्रम भी बनाया और फिर उन्होंने इस्तीफा दे दिया। वजह बताई स्वास्थ्य। लेकिन इससे कई सवाल खड़े हो गए। भारतीय जनता पार्टी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह लोगों को चौंकाते हैं। लेकिन अब एक तीसरे नेता हैं जिन्होंने चौंका दिया पूरे देश को जगदीश धनकड़ उन्होंने ऐसा चौंकाया कि उन्होंने किसी को हवा नहीं लगने दी। कोई इंटेलिजेंस की बड़ी-बड़ी एजेंसियां धरी रह गई और उन्होंने देखिए एक बात तो तय है कि जगदीश धनकर जी ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा नहीं दिया है। यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं यह बात सही है कि उनका स्वास्थ्य बीच में खराब था। वे अस्पताल में रहे। शाम को ठीक 4:30 4 और 4:30 के बीच में उन्होंने एक कार्यक्रम जारी किया हस्ताक्षर करके और वे जयपुर जाने वाले थे 23 जुलाई को। यदि 23 जुलाई को उन्होंने जयपुर का कार्यक्रम जारी किया है । उपराष्ट्रपति तो वह क्या 4:30 बजे तक स्वास्थ्य ठीक था क्या रात को 9:30 बजे उनका स्वास्थ्य खराब हुआ क्या शाम 4:30 बजे से रात को 9:30 बजे के बीच में डॉक्टरों ने कहा कि नहीं आप आज से सारे काम बंद कर दीजिए। इसके पीछे कोई बहुत बड़ा राजनीतिक कारण है और जो कारण है उनमें एक कारण यह हो सकता है कि आप किसी वरिष्ठ अधिकारी के अधिकारों से यदि आप खिलवाड़ करेंगे तो वह हर्ट होता है। यदि वह वरिष्ठ है और सोमवार को हमने सदन में देखा था राज्यसभा में कि जब मलिकार्जुन खडगे बोल रहे थे और उन्हें बोलने का जो अनुमति है वह धनकर जी ने दी थी लेकिन भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी इस समय सरकार में जो स्वास्थ्य मंत्री हैं जेपी नड्डा ने खड़े होकर बोला कि आप जो कुछ बोल रहे हैं वो रिकॉर्ड में नहीं आ रहा है। यह बडी ही अचरज वाली बात है कि आप विपक्ष के सदस्य को यह कहना कि आप जो बोल रहे हैं वह रिकॉर्ड में नहीं आ रहा है। यह सिर्फ और सिर्फ सदन का सभापति कह सकता है। किसी दल का नेता नहीं कह सकता ना सदस्य कह सकता। क्या ऐसा तो नहीं कि कल इस छोटी सी बात ने धनकर जी को हर्ट कर दिया हो? कहीं ऐसा तो नहीं है कि डॉक्टर मोहन भागवत का एक बयान उनको हर्ट कर गया हो कि 75 होते होते यदि कोई आपको बधाई दे तो आप बाहर हो जाओ और वो 75 के होने वाले हैं। लोग बधाइयां दे सकते थे। 74 के कंप्लीट हो गए थे।
सबसे बडा सवाल तो यही है कि आखिर धनकड़ ने क्यों इस्तीफा दिया?
सबसे बडा सवाल तो यही है कि आखिर धनकड़ ने क्यों इस्तीफा दिया? यह देश को जानने का अधिकार है। और यह धनकर जी को भी बताना चाहिए। इस्तीफा स्वीकार करने वालों को भी बताना चाहिए। और धनगर जी को उपराष्ट्रपति बनाने वाली जो सत्तारूढ़ पार्टी है उसे भी स्पष्ट करना चाहिए। बिल्कुल उन पर आरोप लगता रहा। वो पश्चिम बंगाल में राज्यपाल थे तब भी आरोप लगा। वो लोक राज्यसभा में जो कारवाही जिस तरह से संचालित करते थे उन्होंने तकरीबन 36 सदस्यों को एक साथ निलंबित कर दिया था मोदी टू में और इस तरह से उनकी कारवाई हुई वो मुक्त कंठ से प्रधानमंत्री की सराहना भी करते थे और इसके अलावा कई बार उनके व्यवहार से ऐसा लगता था कि जैसे वो विपक्ष को निशाना बना रहे हैं। इस तरह की कार वो उनके जो काम थे उसको लेकर कई बार विवाद खड़े हुए। उन्होंने यहां तक न्यायालय को भी एक नसीहत दे डाली थी। तो ये सारी चीजें करते हुए जगदीप धनकड़ कई बार विवादों में आते थे। लेकिन अचानक वो नेता जो कहीं ना कहीं उपराष्ट्रपति उन पर आरोप भी लगता रहा कि उपराष्ट्रपति रहते हुए वो राजनीतिक राजनीति करने लगे थे। जाटों के बारे में भी बात करने लगे थे। अपने आप को जाट बताने लगे थे। ऐसी बहुत ढेर सारी चीजें थी। जिससे विपक्ष के वो निशाने में भी रहते थे। मीडिया की भी सुर्खियों में रहते थे। जून में उनका एक कार्यक्रम के दौरान अचानक उन्हें सीने में दर्द हुआ और फिर अस्पताल भर्ती करना पड़ा उन्हें तक और उसके बाद वो कई दिन तक अस्पताल में रहे। लेकिन सवाल वही होता है। दूसरा एक पहलू एक यह भी है कि एक महाभियोग भी आने वाला है। यह भी एक विषय था। इस तरह की चीजें क्या हुआ? जब ये राज्यपाल थे तो धनखड़ जी जब राज्यपाल थे तो निश्चित तौर पर वह प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करेंगे। उनका दायित्व भी बनता है। लेकिन जब ये उपराष्ट्रपति बन गए प्रमोट हो गए तो फिर उनकी अनिवार्यता नहीं है। उनका पद प्रधानमंत्री से प्रोटोकॉल में ऊपर हो गए। लेकिन उपराष्ट्रपति बनने के बाद भी धनकड़ जी नरेंद्र के सामने सरेंडर दिखते थे। बिल्कुल उनको हाथ जोड़ते देखा प्रधानमंत्री के सामने झुकते हुए देखा तो इसकी बहुत आलोचना होती थी। यह उनके स्वभाव में था। वो नरेंद्र मोदी के बहुत बड़े कहना चाहिए भक्त थे और अंधभक्त भी कह सकते हो आप थे नहीं हैं। आज भी हैं। लेकिन अब यह क्या हुआ है? यह एक निश्चित तौर पर यह खोज का विषय तो है। हम भी खोजेंगे और तमाम सारा मीडिया दिल्ली का खोजने में लगा हुआ है कि धनकर जी जो रात शाम को 6:30 7:00 बजे तक रूटीन काम कर रहे थे। दोपहर में उन्होंने दिल्ली का अपना जयपुर का प्रोग्राम जारी किया है 23 तारीख का। उन्होंने जो महा अभियोग आया है हाई कोर्ट जज पर उसके संबंध में उन्होंने पूरी चर्चा की है। विपक्ष के सांसदों से मुलाकात की है। सत्ता पक्ष के लोगों से चर्चा की है। बहुत सारी चीजें वो 6:30 बजे तक रूटीन काम कर रहे थे। ये 6:30 और 9:30 के बीच में जो 3 घंटे क्या हुआ है उनसे किसने क्या कहा है और अचानक उन्होंने इस्तीफा भेजा। उन्होंने तो बहाना बना दिया कि मैं मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है और यह अमुमन होता है आप और हम जानते हैं। लेकिन देश स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि कल धनकर जी ने जो इस्तीफा दिया है वो स्वास्थ्य कारणों से दिया है। देश जानना चाहता है कि धनकर जी आपने किस कारण से इस्तीफा दिया है। यह जवाब इसलिए आना चाहिए कि धनकर जी कोई एक मामूली छोटे-मोटे राजनेता नहीं है। इस देश के उपराष्ट्रपति हैं और हमारी आजादी को अब 75 साल से ज्यादा हो गए। हमने कई उपराष्ट्रपति बनते और हटते देखे हैं। लेकिन पहले उपराष्ट्रपति हैं जिन्होंने पद से इस्तीफा दिया है। तो निश्चित तौर पे यह अप्रत्याशित घटना है। और इस घटना पर देश के लोगों को जानने का अधिकार है। प्रधानमंत्री नर नरेंद्र मोदी जी भारतीय जनता पार्टी और जो संसदीय परंपराएं हैं इसके जानकार ये सब मिलकर इनका दायित्व बनता है कि देश को बताएं कि धनगर जी ने इस्तीफा क्यों दिया। आज नहीं तो कल ये बात आएगी जरूर क्योंकि धनकर जी जिस स्वभाव के बने हुए हैं वे खुद भी इस चीज को ज्यादा दिन छुपा नहीं पाएंगे। आज नहीं तो कल वो जब पद से मुक्त हो जाएंगे ना और भार मुक्त होते ही देखना वो हल्के होंगे और जब वो हल्के होंगे तो उनके मुंह से बात निकल ही जाएगी कि आखिर उन्होंने ये पद क्यों छोड़ा था। जगदीप धनकर के पहले भैरव सिंह शेखावत ने भी इस्तीफा दिया था इसलिए कि वो चुनाव राष्ट्रपति का चुनाव हार गए थे। इसके अलावा शंकर दयाल शर्मा जो हमारे मध्य प्रदेश के ही थे। तीन उपराष्ट्रपति ऐसे थे जो राष्ट्रपति बनने के बाद जिन्होंने इस्तीफा दे दिया और यह तो एक इस्ती लेकिन वो जो भी था अस्वाभाविक नहीं था। एक जानकारी यह भी बहुत मायने रखते है कि जगदीप धनकड़ जो हैं वो पुराने समाजवादी हैं। सबसे पहले वो जनता दल से सांसद बने थे। उसके बाद फिर वह कांग्रेस में शामिल हो गए। फिर वह विधायक थे। उसके बाद वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। तो कई तरह की विचारधाराओं से ओतप्रोत थे वो। और अंत अंततः ऐसा क्या हुआ? कौन सी अंतरात्मा जाग गई? कौन सा क्या हुआ? मन में कौन सा ऐसा भाव आ गया कि जो उन्होंने इतना बड़ा निर्णय लिया है। सरकार कभी ऐसा नहीं कहती कि कारवाई नहीं होगी। यह अलग बात है कि सरकार का बहुत तरह का
दबाव प्रभाव होता है। पर्दे के पीछे सरकार के बहुत ढेर सारे निर्णय होते हैं। लेकिन एक समाजवादी को मोदीवादी बनते तो हमने देखा है और वह सत्य भी है। लेकिन इतना तय है मैं बार-बार यह कहूंगा के धनकड़ जी बहुत विद्वान थे। यह अलग बात है कि वो कुछ दबाव में आते वह हम लोगों ने सबने देखा है लेकिन एक विद्वान व्यक्ति की कमी हमको अखेरेगी इस बार सदन में और अब जो भी प्रक्रिया होगी सदन को चलाने की वो सब आ चुकी है सामने बहुत जल्दबाजी नहीं इसमें एक बात और मैं आपसे पूछना चाहूंगा आखिर जयराम रमेश का भी एक उस पूरे मामले में एक पूरा बयान आया है और वो उनसे अनुरोध कर रहे हैं कि वो इस्तीफा वापस ले ले ये कौन सी उन्होंने उन्होंने कटाक्ष किया है वो पूरी तरह से कटाक्ष है उनका उन्होंने एक तरह से तंज भी कसा है। उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया यह देश को जानने का अधिकार है और सरकार को बताना ही चाहिए। यदि सरकार नहीं बताएगी तो आज नहीं तो कल हम खुद जिम्मेदारी से कह रहे हैं। धनकर जी जैसे ही पदभार मुक्त होंगे थोड़े हल्के होंगे। एक दिन ऐसा आएगा क्योंकि धनकर जी बहुत दिनों तक बात छुप छुपा के नहीं रख सकते दिल में। कहेंगे जरूर और धनकड़ जी बोले उसके पहले सरकार को बताना चाहिए। समाजवादी, गांधीवादी, मोदीवादी और बहुत तरह के प्रतिक्रियावादी धनकड़ हैं और उन्होंने यह जो किया है इससे सबको चौंकाया है। वैसे वो अपनी कारगुजारियों से पहले भी चौंकाते रहे हैं लोगों को। लेकिन यह देश जानना चाहता है और आप देश के उपराष्ट्रपति हैं। तो आपको देश को बताना चाहिए कि स्वास्थ्य के अलावा और कौन-कौन सी वजह हैं और ऐसा कौन सा स्वास्थ्य है जिसको आप सुधार नहीं पा रहे थे और अचानक आपने अपनी वो जिम्मेदारी छोड़ दी। यह भी है जैसे रवींद्र भाई कह रहे थे उम्र इसलिए कि राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति तो ऐसे पद है एक उम्र के बाद ही लोग इस पे आते हैं। तो जाहिर है आपके लिए वो उम्र का भी बंधन नहीं था। लेकिन आप किसे क्या संदेश देना चाहते थे? आपने क्या संदेश दिया है? यह भविष्य के गर्भ में है और उम्मीद है जल्दी यह बात सामने आएगी।