नई दिल्ली।
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक अपने पद से इस्तीफे देने के बाद से ही इस मामले पर सियासत की जा रही है। सत्ता में रहते हुए अक्सर धनखड़ का मजाक उड़ाने और उन पर आरएसएस का पक्ष लेने का आरोप लगाने वाले विपक्ष का रुख इस्तीफे के बाद पूरी तरह बदल गया है। जहां पहले विपक्षी नेता धनखड़ पर भेदभाव के आरोप लगाते थे वहां अब वही लोग उन्हीं के अधिकारों के लिए सरकार से सवाल कर रहे है। विपक्ष लगातार केंद्र से धनखड़ के इस्तीफे पर सफाई देने की मांग कर रहा है। उनका आरोप है कि इसके पीछे स्वास्थ्य कारण नहीं बल्कि कुछ और वजह है।
धनखड़ को फेयरवेल डिनर देगा विपक्ष
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी हाल ही मीडिया से बातचीत करते हुए कहा था हमें तो लगता है दाल में कुछ काला है, सरकार को इस मामले पर जवाब देना चाहिए। खड़गे के अलावा अन्य कई विपक्षी नेताओं ने भी इस इस्तीफे के पीछे राजनीतिक कारण होने की बात कही है। धनखड़ के इस्तीफे के बाद से ही यह बयानबाजी लगातार जारी है। इसी बीच अब खबर आ रही है कि विपक्षी पार्टियों ने धनखड़ को फेयरवेल डिनर के लिए आयोजित किया है।
अचानक इस्तीफे के बाद शुरु हुई सियासत
74 वर्षीय पूर्व उपराष्ट्रपति धनखड़ ने स्वास्थ्य कारण बताते हुए सोमवार को अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद विपक्षी नेताओं ने यह मुद्दा उठाया था कि धनखड़ को फेयरवेल स्पीच देने का मौका नहीं मिला। उन्होंने मांग कि थी कि धनखड़ को राज्यसभा की कार्य सलाहकार समिति की बैठक में भाषण देने का मौका दिया जाना चाहिए। अब इसे मुद्दे को और हवा देने के लिए विपक्षी पार्टियों ने पूर्व उपराष्ट्रपति के लिए एक फेयरवेल डिनर का आयोजन किया है। हालांकि, ऐसा कहा जा रहा है कि धनखड़ का इस प्रस्ताव को स्वीकार करना मुश्किल है।
विवादित फैसले के बाद अचानक इस्तीफा
धनखड़ के राज्यसभा के सभापति रहते हुए लिए गए एक विवादित फैसले के बाद ही इस इस्तीफे की खबर सामने आई थी। सोमवार को धनखड़ ने विपक्षी सांसदों द्वारा पेश किया गया एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव स्वीकार किया था। यह प्रस्ताव कैश कांड में फंसे जस्टिस यशवंत वर्मा को उनके पद से हटाने के लिए पेश किया गया था। इस मामले में कार्रवाई शुरु करने को लेकर केंद्र ने लोकसभा में एक अलग प्रस्ताव तैयार किया था। इस प्रस्ताव पर विपक्ष के हस्ताक्षर पहले ही ले लिए गए थे और सरकार चाहती थी कि वह इस मामले की अगुवाई करे ताकि मामला उनके नियंत्रण में रहे। लेकिन धनखड़ के विपक्षी नेताओं के प्रस्ताव को स्वीकार करने से सरकार की योजनाओं पर पानी फिर गया।