• विधानसभा चुनाव से पहले हर समीकरण साधने में लगा एनडीए

पटना। बिहार में इसी साल चुनाव है। नौ महीने करीब बच रहे हैं। इन नौ महीनों के गर्भ से क्या निकलेगा, उसे ध्यान में रखते हुए बिहार में अब मंत्रिमंडल विस्तार होने जा रहा है। इस विस्तार में यादव चेहरे को जगह देना जरूरी भी है और मजबूरी भी। नित्यानंद राय को भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। - यह चर्चा तो कई बार उठी, लेकिन भाजपा ने औपचारिक तौर पर कभी ऐसा नहीं कहा। नित्यानंद बिहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रहे। फिर केंद्र में राज्यमंत्री बन गए। केंद्रीय राज्यमंत्री बनने के बाद भी यह चर्चा उठी थी। लेकिन, नीतीश कुमार के कद के सामने दबकर रह गई। किसी मंच पर खुलकर कोई नहीं कह सका। आज यह बात इसलिए, क्योंकि अब एक बार फिर चुनाव की तैयारी है। अधिकतम नौ महीने में नई सरकार का गठन हो जाएगा। और, बिहार में जातिगत जनगणना के रिकॉर्ड में आई सबसे बड़ी जाति को राज्य की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में औसतन सबसे कमजोर जगह मिली हुई है। सबसे बड़ी आबादी के साथ यह बात भी है कि यह बिहार की राजनीति के कद्दावर नेता लालू प्रसाद यादव की जाति है। मतलब, चुनाव में जाने के पहले मंत्रिपरिषद् में यादवों की भागीदारी बढ़ानी जरूरी भी है और मजबूरी भी।
सबसे बड़ी आबादी को एक मंत्रिपद देकर बैठी है सरकार
28 जनवरी को जनादेश 2020 की वापसी करते हुए बिहार में जब एनडीए की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री समेत नई सरकार में नौ मंत्री बनाए गए थे। उस समय मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड ने एक यादव को मंत्री बनाया। जातिगत जनगणना में सर्वाधिक 14.26 फीसदी आबादी वाली यादव जाति से केवल एक मंत्री सुपौल के जदयू विधायक बिजेंद्र प्रसाद यादव बनाए गए। तभी से यह माना जा रहा था कि राज्य मंत्रिमंडल विस्तार में यादवों की हिस्सेदारी बढ़ाई जाएगी, लेकिन 15 मार्च को जब नीतीश कुमार सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार हुआ तो ऐसा कुछ नहीं दिखा। तब से अब तक, सिर्फ एक ही यादव मंत्री हैं इस सरकार में। अब चुनाव सामने है और साथ ही भाजपा नेताओं का वह वीडियो भी फिज़ा में है, जिसमें लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव को लेकर गंभीर चर्चा हो रही है। मतलब, भाजपा अगर किसी यादव चेहरे को सामने लाए तो चौंकने वाली बात नहीं होनी चाहिए। भाजपा के पास छह-सात मंत्री बनाने का विकल्प है, इसलिए यह संभव भी है।