रोहिंटन नरिमन ने कहा: "बेसिक स्ट्रक्चर डॉक्ट्रिन कभी खत्म नहीं हो सकता"

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन नरिमन ने सोमवार को किताब बेसिक स्ट्रक्चर डॉक्ट्रिन: प्रोटेक्टर ऑफ कॉन्स्टीट्यूशनल इंटीग्रिटी का विमोचन किया. इस मौके पर उन्होंने कहा, मैं बस इतना कह सकता हूं कि इस किताब का मकसद यह है कि यह सिद्धांत हमेशा के लिए है. यह कभी खत्म नहीं हो सकता. इसी दौरान उन्होंने जलियांवाला बाग वाली घटना का जिक्र किया और कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि अगर संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत को किसी भी तरह कमजोर किया गया तो जलियांवाला बाग नरसंहार जैसी घटनाएं होने की आशंका है.
साल 1973 के केशवानंद भारती मामले में 13 न्यायाधीशों की बेंच ने 6 के मुकाबले 7 की बहुमत से (संविधान के) मूल ढांचा सिद्धांत को प्रतिपादित करते हुए कहा था कि संविधान की आत्मा में संशोधन नहीं किया जा सकता और अगर इसमें बदलाव किया जाता है तो इसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकेगी.
जस्टिस नरिमन ने क्या-क्या कहा?
इस फैसले ने संविधान में संशोधन करने के संसद के व्यापक अधिकार को सीमित कर दिया. फैसले में कहा गया कि संसद संविधान की बुनियादी विशेषताओं को निष्प्रभावी नहीं कर सकती. साथ ही, इस फैसले ने संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की संसद की शक्ति को सीमित करने के लिए हर संशोधन की रिव्यू करने का न्यायपालिका को अधिकार दिया.
उन्होंने कहा, अगर किसी वजह से यह कभी खत्म हो भी जाता है तो फिर भगवान ही मालिक है. जलियांवाला बाग (जैसी घटना) की आशंका पैदा हो सकती है. जस्टिस नरिमन ने केशवानंद भारती मामले के बारे में भी बात की, जिसने मूल ढांचा सिद्धांत और संवैधानिक संशोधनों की शक्ति को सीमित करते हुए मौलिक अधिकारों की रक्षा में संविधान के लॉन्ग टर्म निहितार्थों (implications) को स्थापित किया.
जलियांवाला बाग को किया याद
जस्टिस नरिमन ने जलियांवाला बाग को याद करते हुए कहा, 13 अप्रैल 1919 शायद हमारे इतिहास का सबसे काला दिन है, जिसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए क्योंकि, 1919 में उस दिन, ब्रिटिश जनरल रेजिनाल्ड डायर ने जलियांवाला में हमारे अपने सैनिकों को ले लिया था और गोलीबारी की और हमारे नागरिकों की एक बहुत बड़ी संख्या को मार डाला और घायल कर दिया और यही इस किताब का सार है.
उन्होंने कहा, क्या आजाद भारत में ऐसा दोबारा हो सकता है, इस बार डायर की जगह हमारे ही किसी जनरल या पुलिस कप्तान को लाया जाए और हमारे ही लोगों के साथ ऐसा किया जाए? जाहिर है, ऐसा नहीं हो सकता और ऐसा नहीं होने का कारण यह है कि बड़े पैमाने पर यह महान सिद्धांत है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने हमें संवैधानिक संशोधनों से बचाने के लिए निर्धारित किया है, जो ऐसी चीजों की अनुमति दे सकते हैं.
कई मुख्य फैसलों का रहे हिस्सा
जस्टिस नरिमन फेमस ज्यूरिस्ट फली नरिमन के बेटे हैं. जस्टिस नरिमन ने 12 अगस्त, 2021 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पद छोड़ा, जिसमें सात साल से अधिक समय तक न्यायपालिका के फैसले के बाद निजता को मौलिक अधिकार घोषित करना, आसान गिरफ्तारी को सक्षम करने वाले आईटी अधिनियम के प्रावधान को रद्द करना, सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की कैटेगरी से बाहर करना और सभी उम्र की महिलाओं को केरल के सबरीमाला मंदिर में एंट्री करने की अनुमति देना शामिल था.