मैनिट करेगा जीआईएस एप के माध्यम से भोपाल का GIS सर्वे

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पता चलेगा कि किन इलाकों में पड़ती है ज्यादा गर्मी
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कहां भराता है पानी
भोपाल। भोपाल में जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित गरीब और कमजोर तबकों की समस्याओं को समझने के लिए मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मैनिट) ने एक खास रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस प्रोजेक्ट के तहत पहली बार जियोग्राफी इन्फॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) एप के माध्यम से सर्वे किया जाएगा। जिसमें स्थानीय समुदाय की भागीदारी के साथ हीट वेव और बाढ़ जैसी जलवायु आपदाओं की संवेदनशीलता का आकलन किया जाएगा।
हीट वेव और बाढ़ से जुड़े खतरे का डिजिटल रिकॉर्ड कार्यशाला की शुरुआत सोमवार से एमएएनआईटी के आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग विभाग में हुई। इस प्रोजेक्ट का पहला चरण 13 से 16 मई तक चलेगा, जिसमें हीट वेव से प्रभावित इलाकों की पहचान की जाएगी। सर्वे के दौरान यह देखा जाएगा कि भोपाल के किन हिस्सों में गर्मी का असर ज्यादा होता है, जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्र, स्लम बस्तियां, जहां कूलिंग की सुविधाएं न के बराबर हैं। इसके बाद दूसरे चरण में सितंबर में उन इलाकों का सर्वे होगा जहां बरसात के दौरान जलजमाव होता है, नाले उफान पर आ जाते हैं या बस्तियों में पानी भर जाता है। यह प्रक्रिया कमजोर तबकों को सुरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है।
एप आधारित मैपिंग और सामुदायिक भागीदारी इस पूरी प्रक्रिया को एप आधारित बनाया है ताकि नागरिक भी इसमें भाग ले सकें। ओपिनियन टूल के जरिए विशेषज्ञों, स्थानीय प्रतिनिधियों और आम लोगों की जानकारी को रिकॉर्ड किया जाएगा। इससे यह तय किया जा सकेगा कि किन इलाकों में किस तरह की जलवायु आपदा का ज्यादा खतरा है और वहां किस तरह के अनुकूलन उपाय किए जा सकते हैं।
बॉटम-अप अप्रोच से निकलेगा समाधान प्रोजेक्ट का संचालन डॉ. सुरभि मेहरोत्रा, डॉ. प्रेमजीत दास गुप्ता और डॉ. अर्शी पराशर द्वारा किया जा रहा है। डॉ. मेहरोत्रा ने कहा कि यह पहल बॉटम-अप यानी नीचे से ऊपर की नीति निर्माण प्रक्रिया का उदाहरण है। जिसमें समस्या का हल समुदाय की जरूरतों के हिसाब से तैयार किया जाएगा।
नवंबर में होगा अंतिम मूल्यांकन प्रोजेक्ट का तीसरा और अंतिम चरण नवंबर में आयोजित होगा, जिसमें स्थानीय निकायों, नगर निगम और नीति निर्धारकों के साथ निष्कर्ष साझा किए जाएंगे। इसके आधार पर शहर के लिए हीट एक्शन प्लान, बाढ़ नियंत्रण उपाय और शहरी डिजाइन नीति बनाने में मदद मिलेगी।
यह पहल न सिर्फ भोपाल जैसे तेजी से शहरीकरण होते शहरों के लिए जरूरी है, बल्कि यह एक ऐसा मॉडल बन सकता है जिसे देश के अन्य शहरों में भी अपनाया जा सके।