• काशी में बोले- आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत

वाराणसी । कन्यादान समारोह में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि उपकार नहीं, कर्तव्य और अपनत्व के भाव से कन्यादान हुआ। कहा कि जब अपनापन होता है तो कुटुंब बनता है और यही हमारी परंपरा रही है। विवाह तो समाज में होते ही हैं, लेकिन ऐसे सामूहिक कार्यक्रम में काशी जैसी पावनधरा, शिव की नगरी, गंगा का किनारा, पवित्र तीर्थ शंकुलधारा जैसी जगह पर विवाह होना वर-वधु के साथ हम सभी का सौभाग्य है। एक विवाह में जितने संस्कार होते हैं, वह सब यहां हुए हैं। ये बातें बुधवार को शंकुलधारा में हुए कन्यादान समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहीं। 
उन्होंने कहा कि यह कन्यादान कार्यक्रम उपकार नहीं कर्तव्य और अपनत्व के भाव से हुआ है। जब अपनापन होता है तो कुटुंब बनता है और यही हमारी परंपरा रही है। आरएसएस प्रमुख ने कार्यक्रम में मौजूद लोगों को नमस्कार किया। उन्होंने कहा कि जो आज विवाह के बंधन में बंधे उन सभी को मेरी शुभकामनाएं।

जिसे बेटी मानकर किया कन्यादान, उसके दुख-सुख का बनें साथी
कहा कि जिन लोगों ने भी कन्यादान किया है। अब उनका कर्तव्य है कि जिसे बेटी मानकर कन्यादान किया, अब उसके सुख-दुख के साथी बनें। साल में कम से कम एक बार उसे अपने घर बुलाएं और एक बार उसके घर जाएं। जब ऐसा करेंगे तो यह सिर्फ कार्यक्रम नहीं रह जाएगा यह स्वभाव हो जाएगा। हमारी संस्कृति दुनिया में मार्गदर्शन का केंद्र बिंदु रही है। मकान पक्की ईंट से बनता है, समाज में ईंट परिवार होता है और जब परिवार आपस में अपनत्व की भावना से जुड़ जाते हैं तो कुटुंब बनता है। वसुधैव कुटुंबकम की भावना से जीने वाले के आगे सत्ता भी झुकती है।

राष्ट्र हमारे लिए सर्वोपरि

संघ प्रमुख ने कहा कि हम अपना परिवार नहीं भूलते, गांव, मोहल्ला, शहर, जिला और प्रदेश और फिर देश नहीं भूलते हैं। राष्ट्र हमारे लिए सर्वोपरि हो जाता है। वहीं, कुछ लोग इससे भी आगे बढ़ जाते हैं और एक समय पूरी दुनिया को ही अपना घर मान लेते हैं। ऐसे लोगों के सामने फिर सब झुकते हैं। बड़े-बड़े संपत्ति के मालिक, सत्तापति उनके सामने झुकता है। संघ प्रमुख ने कहा कि इस विवाह समारोह को देखिए यहां न कोई जाति है, न प्रांत, न भाषा की बाध्यता है। सभी का एक साथ विवाह हुआ है।

मेरा अनुरोध है इस कार्यक्रम को हर साल करिए
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि मैं काशी के लोगों से अनुरोध करता हूं कि यह कार्यक्रम हर साल करें। इसी स्थान पर करिए और कभी किसी कारणवश यह पवित्र तीर्थस्थान उपलब्ध न हो तो कहीं दूसरी जगह करिए, लेकिन जरूर करिए। यह हमारे-आपके लिए बोध का कार्यक्रम है। यह हमें जिम्मेदार बनाने वाला कार्यक्रम है। यह समाज को एकजुट करने वाला, समाज को बनाने का माध्यम है। इस साल कन्यादान करने की जिन लोगों की इच्छा अधूरी रह गई है वह अगले साल इसी अक्षय तृतीया के मौके पर इस कार्यक्रम को और भव्य बनाकर अपनी इच्छा पूरी करें।  

125 कन्याओं ने मुझे पिता स्वीकारा, मेरा परिवार जीवन भर ऋणी रहेगा : वीरेंद्र जायसवाल
कार्यक्रम संयोजक संघ क्षेत्र कार्यवाह वीरेंद्र जायसवाल ने कहा कि इन कन्याओं का कन्यादान करना मेरे परिवार का संकल्प था। यह समाज का ऋण है, जिसके लिए सभी को कन्यादान करना चाहिए। इन सभी 125 कन्याओं और इनके माता-पिता से मैंने निवेदन किया, कन्याओं ने मुझे पिता के रूप में स्वीकारा। इसके लिए मेरा परिवार आजीवन इन बेटियों का ऋणी रहेगा। सरसंघचालक को मैंने कार्यक्रम के बारे में बताया और उनसे यहां आने का आग्रह किया और वह अभिभावक के तौर पर यहां शामिल हुए। जब इसे शुरू किया तो समाज के कई लोगों ने आगे आकर सहयोग के लिए कहा तो मैंने उनका आभार जताया। मैंने कहा कि यह मेरा संकल्प है, इस बार मुझे कर लेने दीजिए, अगले वर्ष हम सब मिलकर इससे भी बड़ा कार्यक्रम करेंगे। प्रशासन के कर्मचारियों ने पोखर को साफ किया, गलियों में साफ सफाई की, मैं एक-एक कर्मचारी का जीवन भर आभारी रहूंगा।