राजा की इस गलती की वजह से दो माताओं के गर्भ से हुआ इस योद्धा का जन्म, विचित्र ढंग से हुई थी मौत
महाभारत केवल एक युद्ध की गाथा नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू को समझाने वाला अद्भुत ग्रंथ है. इसमें कर्म, धर्म, नीति, त्याग और संबंधों की गहराई से व्याख्या की गई है. इसके पात्र और घटनाएं आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं. हर कहानी अपने भीतर कोई न कोई जीवन सिखाने वाली बात समेटे हुए है. महाभारत का हर अध्याय मानो जीवन का एक पाठ है, जिसे पढ़कर व्यक्ति सही और गलत में फर्क करना सीख सकता है. हिंदू धर्म के कई ग्रंथों में गहरे ज्ञान और अनोखी कहानियों का भंडार है. इन्हीं में एक है महाभारत, जिसमें ऐसे कई पात्र और घटनाएं मिलती हैं जो सोचने पर मजबूर कर देती हैं. आज हम बात करेंगे एक ऐसे योद्धा की, जिसका जन्म दो अलग-अलग गर्भों से हुआ और जिसकी मृत्यु भी सामान्य नहीं थी. यह कथा है मगध नरेश जरासंध की.
राजा की चिंता और ऋषि की सहायता
मगध के राजा बृहद्रथ की दो रानियां थीं, लेकिन उन्हें संतान नहीं हो रही थी. इस कारण वे बहुत दुखी रहते थे. एक दिन वे ऋषि चंडकौशिक के पास पहुंचे और अपनी चिंता बताई. ऋषि ने उन्हें एक फल दिया और कहा कि वह इसे अपनी सबसे प्रिय रानी को दें. इस फल से पुत्र की प्राप्ति होगी. लेकिन राजा दोनों रानियों से बराबर प्रेम करते थे, इसलिए उन्होंने वह फल दो हिस्सों में बांट दिया और दोनों रानियों को खिला दिया. समय बीतने के बाद, जब दोनों रानियां गर्भवती हुईं और प्रसव हुआ, तो अजीब घटना घटी.
जन्म हुआ दो टुकड़ों में
दोनों रानियों ने आधे-आधे शरीर वाला शिशु जन्मा. एक का सिर और धड़ था, तो दूसरी के गर्भ से हाथ और पैर. यह देख सभी हैरान रह गए. राजा और रानियां बहुत डर गए और उन्होंने वह अधूरे शरीर के टुकड़े जंगल में फेंकवा दिए.
जंगल में राक्षसी और बालक का जीवनदान
उसी जंगल में एक जरा नाम की राक्षसी घूम रही थी. उसकी नजर जब इन टुकड़ों पर पड़ी, तो उसने अपने जादू से उन दोनों हिस्सों को जोड़ दिया. शिशु जीवित हो गया. इस अद्भुत घटना से प्रभावित होकर राजा बृहद्रनाथ ने अपने बच्चे का नाम उसी जादूगरनी के नाम पर ‘जरासंध’ रख दिया.
बलशाली योद्धा, जिसे हराना आसान नहीं था
समय बीता और जरासंध बड़ा होकर शक्तिशाली राजा बना. उसने कई राजाओं को हराया और बंदी बनाया. पांडवों को यज्ञ करने के लिए कई राजाओं को हराना था, लेकिन जरासंध के रहते यह संभव नहीं था. इसलिए श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन वेश बदलकर जरासंध के पास पहुंचे. श्रीकृष्ण ने भीम को संकेत दिया और जरासंध को मल्लयुद्ध के लिए ललकारा गया.
मृत्यु का रहस्य
लड़ाई लंबे समय तक चली, लेकिन हर बार जब भीम जरासंध के दो टुकड़े करता, वे फिर जुड़ जाते. यह देख श्रीकृष्ण ने एक तिनका तोड़कर उसके दो टुकड़े अलग-अलग दिशाओं में फेंक दिए. भीम ने यह देखा और समझ लिया कि यही उपाय है. अगली बार जब उन्होंने जरासंध को दो हिस्सों में बांटा, तो उन्हें विपरीत दिशाओं में फेंक दिया. इस बार जरासंध जीवित नहीं हो सका. इस तरह एक विचित्र जन्म वाला योद्धा अपने जीवन का अंत भी एक अनोखे ढंग से पाता है.