• ऊंचागांव में सुरभि होली प्रारंभ

मथुरा।  कान्हा की नगरी में होली का उल्लास छाया हुआ है। मथुरा, वृंदावन, बरसाना और दाऊजी में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। बरसाने की लट्ठमार और लड्डूमार होली के बीच अब यहां हर ओर गुलाल बरस रहा है। वहीं आज गोकुल में छड़ीमार होली का आयोजन होगा। 

'अग्नि परीक्षा' देने के लिए संजू पंडा तैयार
भक्त प्रह्लाद लीला को साकार करने के लिए अग्नि की जलती लपटों से निकलने की परंपरा को जीवित रखने वाले गांव फालैन के ग्रामीण होली मेले की तैयारियां करने में जुटे हैं। वहीं होलिका के दहकते अंगारों के बीच गुजरने के लिए आस्था की 'अग्नि परीक्षा' देने के लिए संजू पंडा तैयार हैं।

ऊंचागांव में सुरभि होली प्रारंभ 
 मैं न-न करती हार गई, रंग डाल गयौ रसिया, सुरभि होली में होत यहां रंगन की भरमार, आगे-आगे ग्वाल पीछे-पीछे ब्रजनार। इसी भाव से साढ़े पांच सौ वर्ष पहले श्रील नारायण भट्ट ने राधारानी की प्रधान सखी ललिताजी के गांव ऊंचागांव में सुरभि होली प्रारंभ कराई थी। श्रील नारायण भट्ट की समाधि स्थल पर इस होली का मंचन किया गया। इसमें ग्रामीण मद मस्त होकर नाच उठे। इस दौरान श्रील नारायण के वशंजों द्वारा उनकी समाधि पर गुलाल अर्पित कर होली प्रांम्भ की। रसियाओं की थाप पर गुर्जर समाज के महिला-पुरुषों ने लोकनृत्य किया। उड़ाए जा रहे अबीर-गुलाल में सराबोर श्रद्धालु अपने आपको धन्य मान रहे थे।

रंगों से विधवा माताओं के चेहरों पर आई मुस्कान
वृंदावन के ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर में बुधवार को विधवा माताओं के लिए होली का आयोजन हुआ। रंगोत्सव के माताओं के चेहरे खिल उठे। इस दौरान उनकी खुशी देखते ही बन रही थी। वर्षों के एकाकीपन और सामाजिक तिरस्कार को पीछे छोड़ते हुए इन महिलाओं ने गुलाल, फूलों की पंखुड़ियों और कृष्ण भजनों के साथ अपनी नई पहचान का उत्सव मनाया। वर्ष 2013 में स्वर्गीय डॉ. बिंदेश्वर पाठक की पहल से इस परंपरा की शुरूआत हुई थी। विरासत को आगे बढ़ाते हुए सुलभ इंटरनेशनल के अध्यक्ष कुमार दिलीप ने विधवाओं के उत्थान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा कि होली का यह उत्सव हमारी सामाजिक सोच में बदलाव का प्रमाण है। मैं न-न करती हार गई, रंग डाल गयौ रसिया, सुरभि होली में होत यहां रंगन की भरमार, आगे-आगे ग्वाल पीछे-पीछे ब्रजनार। इसी भाव से साढ़े पांच सौ वर्ष पहले श्रील नारायण भट्ट ने राधारानी की प्रधान सखी ललिताजी के गांव ऊंचागांव में सुरभि होली प्रारंभ कराई थी। बुधवार को श्रील नारायण भट्ट की समाधि स्थल पर इस होली का मंचन किया गया। इसमें ग्रामीण मद मस्त होकर नाच उठे। इस दौरान श्रील नारायण के वशंजों द्वारा उनकी समाधि पर गुलाल अर्पित कर होली प्रांम्भ की। रसियाओं की थाप पर गुर्जर समाज के महिला-पुरुषों ने लोकनृत्य किया। उड़ाए जा रहे अबीर-गुलाल में सराबोर श्रद्धालु अपने आपको धन्य मान रहे थे। ब्रजाचार्य पीठ के प्रवक्ता घनश्यामराज भट्ट ने बताया कि लठामार होली से पहले श्रील नारायण भट्ट ने सुरभि होली की शुरूआत कराई थी। जब गोपियों के मना करने के बावजूद कृष्ण व उनके सखाओं ने उन पर रंग डाल दिया तो बदला लेने लिए सखियां राधारानी के पास गयीं और उनसे डंडा लेकर होली खेलने को कहा। एक सुर में सखियों ने कान्हा से हास-परिहास किया, इसलिए इसे सुरभि होली कहा जाता है।