एअर इंडिया हादसा : पहचान बने मेटल रॉड और सर्जरी के निशान

AI Plane Crash:भाजपा विधायक हसमुख पटेल ने दावा किया कि एअर इंडिया के विमान हादसे में जले हुए शवों की पहचान मुश्किल थी, लेकिन जिनके शरीर में पहले से मेटल रॉड या सर्जरी के निशान थे, उनसे पहचान संभव हुई। पटेल ने डीएनए मिलान में मदद की और बताया कि तापमान इतना अधिक था कि बाकी पहचान की सभी चीजें नष्ट हो गई थीं। एअर इंडिया के विमान हादसे में जो शव पूरी तरह जल चुके थे, उनकी पहचान करना मुश्किल हो गया था। ऐसे में जिन लोगों की पहले सर्जरी हुई थी और शरीर में मेटल रॉड या प्लेट डाली गई थी, उन्हीं से पहचान संभव हो पाई। ये जानकारी सोमवार को स्थानीय बीजेपी विधायक हसमुख पटेल ने दी, जो हादसे के बाद अस्पताल पहुंचे थे।
हसमुख पटेल अमराईवाड़ी से विधायक हैं और खुद भी डॉक्टर रह चुके हैं। वह सबसे पहले अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के शव परीक्षण विभाग पहुंचे थे, जहां 12 जून की विमान दुर्घटना में मारे गए लोगों के शव लाए गए थे। उस दिन हादसे में 270 लोगों की जान गई थी। उन्होंने बताया कि जब वह अस्पताल पहुंचे तो 7-8 शव पहले ही लाए जा चुके थे, जो बुरी तरह जले हुए थे। कुछ शव तो इतने जले थे कि उनके हिस्से गिर रहे थे। उन्होंने कहा, हमने शवों को क्रम के अनुसार टैग करना शुरू किया। सिर, छाती या हाथ पर कपास की पट्टी से टैग बांधे। सामान्य स्थिति में बाल, गहनों या शारीरिक पहचान से शवों की पहचान हो जाती है, लेकिन विमान में आग का तापमान 1000 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक था, जिससे ये सभी चीजें नष्ट हो गई थीं।
पटेल ने कहा, हमने देखा कि कुछ शवों में घुटनों की रिप्लेसमेंट सर्जरी या शरीर में मेडिकल रॉड लगे थे। इन्हें पहचान के तौर पर नोट किया गया। भाजपा की ओर से पटेल को मृतकों के परिजनों की मदद और डीएनए सैंपल प्रक्रिया में लगाया गया था। उन्होंने बताया कि इन खास संकेतों के आधार पर शवों की डीएनए रिपोर्ट से पुष्टि करना आसान हो गया।
अस्पताल प्रशासन ने बताया कि 12 जून की इस घटना के बाद अब तक 251 शवों की पहचान डीएनए से की जा चुकी है और 245 शव परिवारों को सौंपे जा चुके हैं। एअर इंडिया की उड़ान अहमदाबाद से लंदन जा रही थी। अहमदाबाद हवाई अड्डे से उड़ान भरने के कुछ ही देर बाद ही विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान मेघाणीनगर इलाके के एक छात्रावास पर गिरा। इसमें कुल 241 लोग सवार थे, जिनमें से एक ही जीवित बच सका।
पटेल ने याद किया कि 1988 में भी ऐसा ही हादसा हुआ था, जब मुंबई से अहमदाबाद आ रही उड़ान दुर्घटनाग्रस्त हुई थी। तब वह बीजे मेडिकल कॉलेज में द्वितीय वर्ष के छात्र थे और उन्होंने अपने साथियों के साथ शवों की पहचान करने में मदद की थी। उन्होंने कहा, मैं जून 12 की घटना के बाद कई दिनों तक सो नहीं सका। मैं शारीरिक रूप से सक्रिय था, लेकिन रात को नींद नहीं आई। डॉक्टर होने के नाते मैंने बहुत कुछ देखा है, लेकिन यह हादसा और 1988 की दुर्घटना बेहद दर्दनाक थीं।