SC का चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर रोक से इनकार:कहा- चुनाव नजदीक, नए कानून पर रोक लगाई तो सिस्टम बिखर जाएगा

Updated on 21-03-2024 01:53 PM

सुप्रीम कोर्ट ने 2 नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर रोक लगाने वाली याचिकाएं खारिज कर दीं। कोर्ट ने कहा कि कारण बाद में बताए जाएंगे। बेंच ने यह भी कहा कि 2023 का फैसला नहीं कहता कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए सिलेक्शन पैनल में ज्यूडीशियरी मेंबर होना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि वह चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अधिनियम 2023 पर फिलहाल रोक नहीं लगा सकता, क्योंकि इससे अव्यवस्था फैल जाएगी। नए चुनाव आयुक्तों के खिलाफ भी कोई आरोप नहीं हैं। हालांकि कोर्ट ने कानून को चुनौती देने वाली मुख्य याचिकाओं की जांच करने का आश्वासन दिया है।

मामले की सुनवाई जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता ने की। उन्होंने केंद्र से पूछा कि चयन समिति को उम्मीदवारों के नाम पर विचार करने वक्त क्यों नहीं दिया।

कोर्ट ने 2023 अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सरकार से 6 हफ्ते में जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 5 अगस्त को होगी।

इससे पहले केंद्र सरकार ने बुधवार 20 मार्च को हलफनामा दायर किया था। सरकार ने कहा था कि ये दलील गलत है कि किसी संवैधानिक संस्था की स्वतंत्रता तभी होगी, जब सिलेक्शन पैनल में कोई ज्यूडिशियल मेंबर जुड़े। इलेक्शन कमीशन एक स्वतंत्र संस्था है।

याचिका कांग्रेस कार्यकर्ता जया ठाकुर और NGO एशियन डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।

पूर्व चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे और अनूप पांडे के रिटायरमेंट के बाद नए कानून के अनुसार 2 नए चुनाव आयुक्तों ज्ञानेश कुमार-सुखबीर संधु की नियुक्ति 14 मार्च को हुई है।

2023 का फैसला कानून बनने तक ही लागू था- सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच के 2023 के फैसले में यह कहीं नहीं कहा गया था कि नए कानून में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए चयन पैनल में ज्यूडीशियरी से एक सदस्य होना जरूरी है। फैसले में एक चयन पैनल बनाने का प्रस्ताव था, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और CJI शामिल किया जाए।

बेंच ने यह भी कहा कि यह प्रस्ताव केवल संसद के कानून बनाए जाने तक था। फैसले का मकसद संसद को कानून बनाने के लिए प्रेरित करना था क्योंकि वहां खालीपन था। हालांकि इसमें यह नहीं बताया गया था कि किस तरह का कानून बनाया जाना चाहिए।

कोर्ट रूम लाइव...

प्रशांत भूषण- सर्च कमेटी ने 6 नाम शॉर्टलिस्ट किए। 14 मार्च को चयन समिति की बैठक हो गई। उन्हें पता था कि 15 मार्च को हम कोर्ट आने वाले हैं। विपक्ष के नेता का कहना है कि मुझे 10 मिनट पहले नाम दिए थे। इससे पहले 200 नाम भेजे थे। यह सब हमारी याचिका को निरर्थक बनाने के लिए किया गया था।

जस्टिस खन्ना- आपने देखा कि हमने पहले रोक क्यों नहीं लगाई? क्योंकि इस अदालत की शुरुआत से लेकर फैसले तक, राष्ट्रपति नियुक्तियां कर रहे थे। प्रक्रिया काम कर रही थी।

प्रशांत भूषण- अनूप बरनवाल ने कहा है कि यदि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कार्यपालिका करती है, तो यह गंभीर खतरा है।

सुप्रीम कोर्ट- चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष होना होगा। इस कानून से पहले संविधान ने क्या तय किया था?

प्रशांत भूषण- एक खालीपन था। संविधान सभा को उम्मीद थी कि इसे स्वतंत्र पैनल के जरिए भरा जाएगा, न कि कार्यपालिका के प्रभुत्व वाले।

जस्टिस दत्ता- मान लीजिए कि अनूप बरनवाल नहीं हैं और संसद यह कानून लेकर आई, तो चुनौती का आधार क्या होगा?

प्रशांत भूषण- वही, स्वतंत्रता ही इस चुनौती का आधार रहेगी।

जस्टिस खन्ना- फैसला इसलिए दिया गया क्योंकि कोई कानून न होने से खालीपन था। फैसले ने कानून बनाने पर जोर दिया। हम कानून की संवैधानिकता पर विचार किए बिना उस पर रोक नहीं लगा सकते। अब जब उन्हें नियुक्त किया गया है, और चुनाव नजदीक हैं, तो इसके संतुलन पर विचार करना होगा, क्योंकि नियुक्त व्यक्तियों के खिलाफ कोई आरोप नहीं हैं।

प्रशांत भूषण- मैं यह नहीं कह रहा हूं कि एक आयुक्त के साथ चुनाव कराएं। उन्हें तब तक काम करने दें जब तक उनका रिप्लेसमेंट नहीं आ जाता।

सुप्रीम कोर्ट- संविधान पीठ के फैसले में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि चयन समिति में कौन सदस्य होना चाहिए। आप यह नहीं कह सकते कि चुनाव आयोग कार्यपालिका के अधीन है। हम जांच करेंगे, लेकिन फिलहाल हम कानून पर रोक नहीं लगा सकते।

प्रशांत भूषण- कोर्ट ने पहले भी कई कानूनों पर रोक लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट- वे अपवाद थे। यहां यह इतना आसान नहीं है।

एडवोकेट शंकरनारायणन- फैसले का पैरा 301 में कोर्ट ने कहा कि जो भी कानून बनाया जाएगा वह अलग होगा। यह अनुच्छेद 324 की व्याख्या है। वे संविधान में संशोधन करके ही इससे छुटकारा पा सकते थे।

सुप्रीम कोर्ट- फैसले में कहा गया है कि एक खालीपन था। अदालत ने कभी नहीं कहा कि हम संसद को एक विशेष तरीके से कानून बनाने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।

एडवोकेट शंकरनारायणन- कम से कम धारा 7 पर रोक लगाएं क्योंकि वे नियुक्तियां करना जारी रखेंगे।

एडवोकेट विकास सिंह- जरूरी नहीं कि तीसरा व्यक्ति CJI हो, लेकिन CJI जैसे विश्वसनीय व्यक्ति को लाया जाना चाहिए था। चुनाव नजदीक हैं, लोकतंत्र खतरे में है। CJI एक समिति बना सकते हैं जो नियुक्तियों की जांच करे।

एडवोकेट संजय पारिख- खालीपन है और उसे भरना होगा। संसद को यह करना होगा। लेकिन बेंच की पूरी कवायद यह देखने के लिए थी कि लोकतंत्र को कैसे बचाया जा सकता है। फैसले में "कार्यपालिका की विशेष शक्ति छीनने" का उल्लेख है। सीजेआई को सुझाव देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। ऐसा न होना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को समाप्त कर देगा।

एसजी तुषार मेहता- चुनाव आयुक्त को नियुक्ति प्रक्रिया फरवरी में शुरू हुई। अधिनियम लागू होने के तुरंत बाद।

सुप्रीम कोर्ट- इसके 2 पहलू हैं- पहला अधिनियम और इसकी संवैधानिक वैधता, दूसरा- अपनाई गई प्रक्रिया। प्रक्रिया अलग मुद्दा है, लेकिन आपको नामों की जांच-परख करने का मौका देना था।

SG मेहता- सभी 200 नाम समिति के सभी सदस्यों के पास जाते हैं। वे कहते हैं कि हमने प्रक्रिया तेज कर दी है। यह प्रक्रिया फरवरी में शुरू हुई थी। तब हमारे पास केवल 2 व्यक्ति थे।

सुप्रीम कोर्ट- आपको थोड़ा धीरे-धीरे काम करते। सर्च कमेटी को पहले एक्टिव होना था। एक को चुनने के लिए 15 मार्च को मीटिंग थी, दूसरे को चुनने के लिए आपने 14 मार्च को बैठक कर ली?

जस्टिस दत्ता- 1 पोस्ट के लिए 5 नाम हैं। 2 के लिए आपने केवल 6 भेजे, 10 क्यों नहीं? चुनाव आयोग के रिकॉर्ड से तो यही पता चलता है। वे 200 नामों पर विचार कर सकते हैं, लेकिन समय कितना दिया गया है? शायद 2 घंटे? 2 घंटे में 200 नामों पर विचार कैसे होगा? आपको ट्रांसपैरेंसी रखनी थी।

SG मेहता- यदि जजों की एक कमेटी रजिस्ट्रारों के ग्रुप में से किसी को नियुक्त कर रही है, तो वे सदस्यों को पहले से ही जानते हैं। आयोग के सदस्यों के साथ भी ऐसा ही है। वे लोगों को जानते हैं।

जस्टिस दत्ता- लेकिन न्याय सिर्फ किया ही नहीं जाना चाहिए बल्कि न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए। जनता के लिए सवाल उठाने की कोई गुंजाइश क्यों छोड़ी जाए।

जस्टिस खन्ना- जिस तरह से नियुक्ति की गई, इससे बचा जा सकता था। मामला अदालत में चल रहा था। चयन समिति के व्यक्ति ने भी कहा था कि उन्हें कुछ समय चाहिए। हम चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर रोक की अर्जी खारिज कर रहे हैं, कारण बताएंगे।

चुनाव आयुक्ताें की नियुक्ति की प्रक्रिया...
29 दिसंबर 2023 को ही CEC और EC की नियुक्ति का कानून बदला है। इसके मुताबिक, विधि​ मंत्री और दो केंद्रीय सचिव की सर्च कमेटी 5 नाम शॉर्ट लिस्ट कर चयन समिति को देगी। प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय मंत्री और विपक्ष के नेता या सबसे बड़े विरोधी दल के नेता की तीन सदस्यीय समिति एक नाम तय करेगी। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद नियुक्ति होगी।

नए कानून पर विपक्ष ने आपत्ति दर्ज कराई थी
विपक्षी दलों का कहना था कि सरकार सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के आदेश के खिलाफ बिल लाकर उसे कमजोर कर रही है। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2023 में एक आदेश में कहा था कि CEC की नियुक्ति प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और विपक्ष के नेता की सलाह पर राष्ट्रपति करें।

याचिका में आरोप- ये कानून सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन
जया ठाकुर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि धारा 7 और 8 स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत का उल्लंघन है क्योंकि यह चुनाव आयोग के सभी सदस्यों की नियुक्ति के लिए फ्री सिस्टम प्रदान नहीं करता है।

ये कानून सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2023 के फैसले को पलटने के लिए बनाया गया, जिसने CEC-EC को एकतरफा नियुक्त करने की केंद्र की शक्तियां छीन ली थीं। यह वो प्रथा है जो आजादी के बाद से चली आ रही है।

चुनाव आयोग में कितने आयुक्त हो सकते हैं?
चुनाव आयुक्त कितने हो सकते हैं, इसे लेकर संविधान में कोई संख्या फिक्स नहीं की गई है। संविधान का अनुच्छेद 324 (2) कहता है कि चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं। यह राष्ट्रपति पर निर्भर करता है कि इनकी संख्या कितनी होगी। आजादी के बाद देश में चुनाव आयोग में सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त होते थे।

16 अक्टूबर 1989 को प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने दो और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की। इससे चुनाव आयोग एक बहु-सदस्यीय निकाय बन गया। ये नियुक्तियां 9वें आम चुनाव से पहली की गईं थीं। उस वक्त कहा गया कि यह मुख्य चुनाव आयुक्त आरवीएस पेरी शास्त्री के पर कतरने के लिए की गईं थीं।

2 जनवरी 1990 को वीपी सिंह सरकार ने नियमों में संशोधन किया और चुनाव आयोग को फिर से एक सदस्यीय निकाय बना दिया। एक अक्टूबर 1993 को पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने फिर अध्यादेश के जरिए दो और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को मंजूरी दी। तब से चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो चुनाव आयुक्त होते हैं।



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