इस सरकारी प्रोजेक्ट के लिए आमने-सामने हैं मुकेश अंबानी और रतन टाटा, आखिर इसमें क्या है ऐसा खास
Updated on
04-04-2024 03:40 PM
नई दिल्ली: सरकार ट्रांसपोर्ट सेक्टर में ग्रीन हाइड्रोजन के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। इसके लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL), टाटा मोटर्स और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) प्रमुख बोलीदाता होंगे। इसका मकसद अर्थव्यवस्था को कार्बन मुक्त करने, जीवाश्म ईंधन आयात पर निर्भरता कम करने और भारत को ग्रीन हाइड्रोजन टेक में भारत को लीडर बनाना है। इसके लिए बोली लगाने की डेडलाइन आज खत्म हो रही है। सूत्रों के मुताबिक रिलायंस, टाटा मोटर्स और आईओसी 496 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट को हासिल करने की होड़ में सबसे आगे हैं। यह नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का हिस्सा है जिसे जनवरी 2023 में 19,744 करोड़ रुपये के बजट के साथ शुरू किया गया था।
इंडस्ट्री के सूत्रों के अनुसार रिलायंस ने इसके लिए बस और ट्रक निर्माता अशोक लीलैंड और डेमलर इंडिया कमर्शियल व्हीकल्स (DICV) के साथ साझेदारी की है। टाटा मोटर्स ने भी IOCL के साथ एक कंसोर्टियम बनाया है। अशोक लीलैंड भी इसके लिए NTPC के साथ साझेदारी कर रहा है। इस बारे में RIL, NTPC और IOCL ने उन्हें भेजे गए सवालों का जवाब नहीं दिया। अधिकांश ऑटो कंपनियां पिछले कुछ समय से RIL और NTPC जैसी ऊर्जा कंपनियों के साथ मिलकर हाइड्रोजन-ईंधन वाले ट्रकों और बसों पर पायलट प्रोजेक्ट चला रही हैं। टाटा मोटर्स और अशोक लीलैंड के प्रवक्ता तुरंत टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे। DICV के एक प्रवक्ता ने इस बात की पुष्टि की कि उसने परियोजना के लिए RIL को लेटर ऑफ सपोर्ट दिया है।
रिलायंस को फायदा
इस प्रोजेक्ट के लिए बोली लगाने वाली कंपनियों में केवल रिलायंस ही ऐसी कंपनी है जो एंड-टू-एंड सर्विस प्रोवाइडर हो सकती है। यह H2 के निर्माण और ईंधन वितरण से लेकर H2-संचालित वाहन चलाने तक में सक्षम है। कंपनी इलेक्ट्रोलाइजर और हरित H2 के लिए PLI योजना में भी भागीदार है। एक सूत्र ने कहा कि रिलायंस पिछले कुछ समय से न्यू एनर्जी बिजनस पर काम कर रही है और अगर वह यह बोली जीतती है तो उसे काफी फायदा होगा। इससे देश में आने वाले वर्षों में बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन उत्पादन का मार्ग प्रशस्त करेगा। H2 कॉरिडोर परियोजना का उद्देश्य देश में चरणबद्ध तरीके से हाइड्रोजन से चलने वाली बसों, ट्रकों और कारों को बढ़ावा देना है। पायलट प्रोजेक्ट से कंपनियों को बुनियादी ढांचा स्थापित करने और उसके सुचारू संचालन के लिए समय मिलेगा। ग्रे हाइड्रोजन प्राकृतिक गैस या कोयले से उत्पन्न होती है।
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