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भोपाल, रवीन्द्र जैन।
एक राजनीतिक दल ने अपने विपक्षी राजनीतिक दल के नेता को पप्पू बनाने के लिए रुपये खर्च किए, टीवी चैनलों को खरीदा, पूरा माहौल बनाया और खबर तो यहाँ तक है की लगभग 30,000 लोगों की एक फौज पूरी सोशल मीडिया पर बैठकर एक नेता को पप्पू बनाने की कोशिश 10 साल से करती रही। हमें नहीं पता की वो कितने पप्पू बने की नहीं बने, लेकिन इतना जरूर है की जो पार्टी उन्हें पप्पू बनाने की कोशिश कर रही थी, उस पार्टी के नेता को 24 घंटे में इस देश की जनता ने बना दिया। अब कौन पप्पू है, कौन पनौती है? आप सब जानते हैं ये क्या माहौल है? क्या राजनीति में पप्पू और पनौती होना चाहिए? इन विषयों पर हम बात करने के लिए आए हैं। वरीष्ठ पत्रकार अरूण दीक्षित जी के पास अरुण जी आपका स्वागत है, आपने महसूस किया होगा जो मैंने अभी बोला है की क्या राजनीति में पप्पू चलते रहेंगे या इसके आगे भी हम देश में प्रगति की कोई बात करेंगे?
रवीन्द्र जी, मैंने 1982 में पत्रकार के तौर पर कैरिअर शुरू किया था। टाइम्स ऑफ इंडिया से। सभी दलों के कमोबेश और बीजेपी तो सबसे ज्यादा शालीन सौम्य शिष्ट दल था। कांग्रेस थोड़ा वैसी थी। मुलायम सिंह भी देखें समाजवादी भी देखें बसपाई भी देखें महाराष्ट्र के वह सब दल देखे सारे दलों का जो है ये अचानक पिछले एक दशक में चौतरफा गिरावट जो हुई और इसके लिए एक सुनियोजित वार रूम बना। इसके लिए पहले से युद्ध स्तर पर तैयारी की गई और एक कई बार होता है। हँसी मजाक में भोपाल में तो बहुत सारे लोगों के नाम रख दिए जाते हैं। वैसे अगर आप मैं हैट लगाके चलता हूँ तो बहुत सारे लोग कहते है अच्छा दीक्षित हैट। इस तरह के नाम तो ये चीजें होती है लेकिन एक बड़े दल ने बहुत प्लैन करके करोड़ रुपये खर्च करके एक व्यक्ति को जो उठ रहा था दूसरों की तुलना में उसके विडिओ काट के उसके बयानों को काट पिट करके और उसको पप्पू साबित करने की कोशिश की। क्योंकि कई बार आप हम और आप बात करते हैं तो कई ऐसी चीजें होती है अगर बीच का निकाल दो तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है और ये छोटे लोगों ने नहीं किया, मज़े की बात है की दूसरे दल के शीर्ष नेताओं ने किया और एक पूरी फौज लगी। लगातार पिछले 10 साल में हर बार अभी भी पप्पू का वो एक रिफरेन्स आलू और सोने का फिर घूम रहा था। अभी भी तो जबकि ये साबित हो चुका है की कहाँ किसी और ने कही संदर्भ में है, पर झूठ को चलाते चलाते चलाते चलाते इतना ज्यादा बढ़ गया कि बस आप कह दो पप्पू कौन हैं? तो गूगल भी नाम बताने लगा। ये उपलब्धि थी लेकिन कितनी स्पीड से चीजें बदलती है की 24 घंटे अभी नहीं हुए हैं? अगर आप पनौती पूछ लो तो गूगल पे बता देगा। पनौती कौन है और बिना पैसे के ये ये जो जो आपने पूछा जो गिरावट शुरू हुई, हमने बहुत सारे जुमले सुने। हमने बहुत सारी बाते सुनी। 10 साल पहले जर्सी गाय मतलब किसी महिला के लिए 50,00,00,000 की गर्लफ्रेंड। कांग्रेस की विधवा ऐसे शब्द जब आये तो हमको लगा था की हम  कहा तो रार नई ठानूंगा जैसी कविताएं जो है पढ़ने वाले लोगों की रचने वाले लोगों की पार्टी और कहा महिलाओं के प्रति जर्सी, गाय कीमत। लगातार धीरे धीरे जो पतन शुरू हुआ तो पप्पू तो हर कोई मतलब लगातार फौज लगी थी। लेकिन ये पनौती जो है ये 24 घंटे में पनौती कई बार होता है, एक अंग्रेजी का शब्द है बुमरैंग की आप जैसा मारते हो करते रहते हो लौटके आपके पास आता है। तो ये बहुत बड़े रूप में पी से पप्पू भी है, पी से पनौती भी है, लौट के आया है ये पप्पू और पनौती का अर्थ क्या है? पप्पू तो अपन मान सकते है की कोई एक ऐसा बालक नहीं जिसमे देखिये पप्पू हम घर में छोटे बच्चों को प्यार से कहते हैं और अभी तो पप्पू है मतलब छोटा। ऐसा नहीं है छोटे बच्चे को अरे अच्छा है यार छोटे बच्चे को हम लोग उसको क्या करते है की जैसे उसको चॉकलेट खानी है। हम थोड़ा उसको भ्रमित कर देते हैं और उसको करके ले जा के इधर उधर करते जा रहे हो करने की कोशिस लिए किया गया। ये आज भी बच्चा है हाँ बच्चा साबित करने के लिए अरे यार इसको तो मूर्ख बना सकते हैं आप पप्पू इसलिए कहा गया। लेकिन पनौती का मतलब होता है जिसको आप आप कहते हैं की हम लोग की ये अपशकुनी जो है पनौती जीसको देखते ही रास्ता वो अपने गांव में चलता है की यार इसकी शकल देख ली अब आप मुश्किल हो जाएगा, ये तो बहुत बड़ी होती है। कोई शुभ कार्य होगा ना दिन दिन अच्छा जाएगा। अगर किसी चीज़ के लिए कोई चीज़ आपके खिलाफ़ चली जाती है, कोई ऐसा व्यक्ति जीसको देखते ही क्योंकि हमारे समाज में तरह तरह के भ्रम हैं। मैं उसको ये नहीं मानता की ऐसा। ऐसा वैज्ञानिक युग में किसी का चेहरा देखके हो, लेकिन आज भी आदिवासी तो छोड़ दीजिये, अच्छे भले अरबपति भी अगर बिल्ली निकल गई तो गाड़ी रुकवा लेते हैं तो ये मानसिकता बैठी हुई है की यार ये तो है पनौती मतलब इसको देखा और अपना नुकसान हुआ पनौती मतलब हानिकारक। पनौती मतलब दुष्ट पनौती। मतलब घातक। ये अलग अलग चीजों पर लगता है। पप्पू और  पनौती का सफर जो है पप्पू तो सामान्य बच्चे को कहते पनौती शब्द जो आया है पता नहीं किसने को इन किया और किस पे चिपकाया। लेकिन ये एकदम चरित्र से मेल खाता है। उधर पप्पू भी खाता था। इधर पनौती भी खाता है क्योंकि हर मोर्चे पर आप देख लो साबित हो रही है लेकिन अब ये बताइए की ये जो राजनीति के छात्र हैं या राजनीति का इतिहास लिखा जाएगा तो आपको लगता है कि बड़े महत्वपूर्ण विषय हो गए हैं? अब मुझे लगता है कि इन पर तो लोग पीएचडी करेंगे। अब पेपर पेपर हाँ और होनी चाहिए क्योंकि ये ऐसा सब्जेक्ट है की पप्पु एक ऐसा शब्द जो घर में आप अपने बच्चे से लेके शुरू करते हो जीसको भोले भाले बच्चों के लिए रहता है। यार पप्पू को भरमा दो, कभी भ्रम में डाल दो, उसको घूमा दो, बातों में फंसा लो, आपको नहीं लगता अरुण जी की पप्पू ने पदयात्रा करके अपनी इमेज को डेंट से बचा लिया है? अब पनौती को भी पद यात्रा पर निकलना पड़ेगा क्या? अब देखिये पप्पू जो है पप्पू ने देश के इस कोने से उस कोने तक लोगों के बीच जाके उनसे खुद को जोड़ के और उनके बीच में ये बता के की वो क्या है? तो पप्पू तो धीरे धीरे फेमस हो गया, अब पप्पू को पहले से बाहर आ गया। पप्पू बनने से पहले पप्पू की वो उम्र निकल गयी चाहे वो राजनीति की हो, चाहे मतलब आप ये मान सकते हैं। पप्पू को लोग गंभीरता से लेने लगे हैं। पप्पू ने इतने सालों में साबित कर दिया है की वो जो कह रहा है उसके लिए उसका मायने रखता है और वो आदमी जो है वो सच पर कायम हैं। अब चुनौती पनौती के सामने है, अब वही है ना। तो दूसरी तरफ क्या हुआ की 10 साल में लगातार ऐसी ऐसी चीजें अपने सामने आयी है देश में ऐसी ऐसी चीज़ है की हर चीज़ पे गाली मुझे अगर मुझे गाली किसी ने दी मेरे बाप को गाली दे दी, मेरी माँ बर्तन मांजती हैं मैं चाय बेचता था सारे झूठ कभी कभी 35 साल भीख मांगी, कभी 35 साल सेना के साथ दिवाली मनाई कभी 35 साल में जंगलों में रहा हूँ हर हर तरफ झूठ और जहाँ भी आज की स्थिति है, मैं कहूँ गंभीरता से 41 लोग पिछले 10 दिन से सुरंग में पड़े हैं। इस देश में उनकी जान की कोई कीमत नहीं और पनौती जो है आप स्टेडियम में तालियां बजा रहे हो। आप पनौती जो है ठहाके के लगा रहे हैं और खुद को कहते है की उन्हें बड़ा दुःख होता है। एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है और गंभीर प्रश्न हैं। आपको लगता है कि मई 2024 में होने वाले चुनाव में पप्पू बनाम होगा? ये चुनाव? अहमदाबाद में ये जमीन तैयार हो गई। पप्पू बनाम पनौती देख लीजिए सोशल मीडिया ट्रेंड सेट करता है। आज मध्यप्रदेश में तो कम दुनिया भर में देश में कम दुनिया भर में पनौती चल रहा है।सुबह से कम से कम 10 लोगों ने मुझसे पूछा की भाई साहब पनौती का मतलब क्या होता है? बाकायदा मैंने उनको फेसबुक पे बताया, सोशल मीडिया बताया और फ़ोन करके जवाब दिए गूगल क्या बोल रहा है का मतलब गूगल मैंने देखा नहीं है, लेकिन अगर गूगल सर्च करेंगे तो गूगल बता देगा क्या है वो ट्रेंड कर रहा है गूगल पे ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा है मेरा मूल सवाल है। लोकसभा चुनाव में पप्पू पप्पू चलेगा? देखिये ये जो चार राज्यों के चुनाव है। इनका जो परिणाम तीन तारीख को आएगा इससे ये साबित होगा की जैसे कहते है ना की शब्द जो है वो अपना एक कहावत है ना कि ताबूत में आखिरी कील। अगर ये चुनाव परिणाम जैसे की सट्टा बाजार कह रहा है मीडिया का एक वर्ग कह रहा है अगर उसी उम्मीद के अनुरूप आये तब तो फिर जो है से ठोक जाएगा। बॉम्बे कील आती है चार इंच वाली वह ठोकेगी और पनौती एक बात और बता नहीं पनौती नाम जिनके लिए दिया गया है जीस दल का वो नेतृत्व कर रहे हैं। अगर किसी उनके दल के किसी कार्यकर्ता से पूछो तो अब वो भी कहते हैं कि अब तो साबित हो गए कब तक चलाओगे? एक बहुत महत्वपूर्ण मैं यूट्यूब पे देख रहा था वहाँ के जो अयोध्या के साधु संत हैं ना, अब वो लोग मांग कर रहे है की को यहाँ नहीं आना चाहिए प्राण प्रतिष्ठा मैं अब ये एक नया मुद्दा है। अब वो लोग चिल्ला कर रहे हैं, कह रहे है की ये साधु लोग कह रहे हैं वहाँ के अयोध्या के क्या आएगा तो अपशकुन हो जायेगा। हम लोग रोज़ सुन रहे है की इतने मंदिर बना दिए शिव काशी विश्वनाथ का हो गया महाकाल का महालोक हो गया अयोध्या आप सोचो मुझे लगता है की इन लोगों को बनाने में जीतने मंदिर ध्वस्त किए गए हैं। इतने तो मुस्लिम और जो दूसरे बार बार आता ही है, उन्होंने नहीं तोड़े बनारस में। सब सब हजारों मंदिर तोड़े गए। उज्जैन में देख लीजिये कितना बड़ा मतलब खुद महाकाल के भीतर जो मंदिर को बड़ा करने के लिए किया है ना वो सवाल ये है की इसका क्या मतलब? एक के लिए आप जो पुराने आज के नहीं थे।  आप ईश्वर को हम सब मानते हैं जो राम को लाये थे उनको लायेंगे राम को क्या इनकी औकात है? इनकी हैसियत है, ये रामको ला सकते हैं। मैंने यूट्यूब पे सुना था एक छोटा सा 8 से 10 साल का बच्चा गा रहा था की यदि आप रामको ला सकते हो जो खाना है राम को लाये थे हमको लाएंगे तो आप हमको ला सकते हो तो आप जो पैसा लेकर विदेश भाग गए उनको क्यों नहीं ला रहे हों? एक 8 से 10 साल का बच्चा ये बात कह रहा है अब कैसी चीजें आ गई? पनौती से पहले एक और चीज़ आयी थी। जो पैसे लेकर भाग गए हैं वही कह रहा हूँ की देखिये आप का मुँह मणिपुर पे नहीं खुलता है, वहाँ बहुत बड़ी चुनौती है, महिलाओं के साथ हुआ है, वहाँ पनौती साबित हो गए। आप ऐसे जब एक सांसद पर देश की महिला रेसलर पहलवान रोती हैं, आरोप लगाती है उस पर आपका।है वो तो मुँह कैसे खुलेगा? सबसे बड़ी चीज़ जो मैं कह रहा था की भगवान की आड़ में जब आप भगवान को लाने का अरे इतना दंभ दुनिया में जैविक रूप से तो कुछ नहीं लाये, जिसपे जाने जाओ और भगवान को लाने की बात करते हों ईश्वर से बड़े हो गए आप और कितनी बड़ी नौटंकी है। आप देखो केदारनाथ जब द्वार खोलते हैं तो क्या क्या नहीं हुआ है? वो खुद जाते हैं, नहीं जाते भी हैं, पनौती भी साबित हुए हैं। उनके आने के बाद ही बहुत बड़ा नास हुआ है। ये आप कैसे भूल जाते हैं? ये सब चीजे जो है ना वहाँ भी अभी इतना पहाड़ देख रहे हैं। बहुत बहुत महत्वपूर्ण सवाल ये है की किसी को पप्पू कह देने से किसी को कह देने से इस देश की समस्याओं का समाधान तो नहीं होता ना? तो मैं कह रहा हूँ की आपने देश की मूलभूत समस्या रोजगार है, महंगाई है जिन मुद्दों को लेकर के आये थे, 2014 में जो मुददे थे। आप और हम सब बड़े उत्साहित थे लेकिन वो मुददे कहाँ गए और फिर कौन सी चीजें आयीं हमने ऐसा निकृष्टतम स्तर भाषा का? भाषा की भाषा का मतलब मंच से खड़े होके और जीस तरह की चीजें और जो जो किया गया है ऐसा कभी किसी मतलब प्रधानमंत्री बहुत हुए हैं, चौधरी चरण सिंह भी मतलब कांग्रेस खाना मतलब कांग्रेस खानदान से हटाये मनमोहन सिंह को आपने रेनकोट पहन के नहाने वाला ऐसी बातें संसद में कहीं यह तो स्तर हैं इनका। एक आखरी सवाल और बहुत महत्वपूर्ण हम ये देखते है जब भी कोई पनौती लगती है तो उससे पीछा छुड़ाने के लिए कुछ किया जाता है। आपको लगता है की जीस दल के नेताओं को पनौती लगी है उस दल उस नेता से पीछा छुड़ाने की कोशिश करेगा। अब कम से कम पांच विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव से पहले मैं आपसे दूसरा सवाल आपसे पूछता हूँ, आप एक एक जगह गए हैं, उस दल के लगभग हर नेता से पिछले एक महीने में मिले सब के इंटरव्यू किए हैं, आपको ऐसा लगा नहीं की वो तैयार बैठे हैं इस पनौती से निपटने के लिए?पनौती का हल खोजने के लिए और चुनाव परिणाम में हो सकता है की वो जो आये वो के खिलाफ़ ही आये क्योंकि कांग्रेस को या किसी और को नहीं लगी है। पनौती उनको लगी है। मतलब आप सोचिये बिना नाम लिए कहेंगे की आदमी ने जिसने जीवन दे दिया, रिकॉर्ड बनाया 17 साल चीफ मिनिस्टर रहे उसको लगी।क्योंकि उसका नाम बाहर हो गया। वो लोग जिन्होंने पार्टी को खड़ा किया उन्हें लगी की वो बूढ़े बना के धक्के देकर वो किनारे कर दिए गए। घर बैठा दिए गए।केंद्र के मंत्री देख लीजिए हाँ उन्हें पनौती नहीं है जो उस लेवल पे नहीं थे। कई बार होता है ना की जब वक्त अच्छा होता है तो गधा भी राजा बन जाता है तो ऐसे ही बहुत सारे गधे जो है पनौती की सवारी बन के आगे पहुँच गए और वो अपने आप को शेर समझने लगे हैं पर एक चीज़ पक्की है। आखिरी बार कहता हूँ कि पप्पू से पनौती तक का सफर।ये ध्यान रखिये बहुत गंभीर बात है की अगर आप किसी के सामने एक उँगली उठाते हैं तो तीन चार उँगली अपनी तरफ आती है। पप्पू को तो आज भी लोग प्यार करते हैं पर पनौती से तो हर व्यक्ति नफरत करता है और ये सफर पप्पू वाले ने खुद ही तय किया है। पप्पू से पनौती जो पप्पू को लाया वो खुद पनौती बन गया। यही इस देश की व्यवस्था यही इस देश की जनता है। चलिए बहुत बहुत धन्यवाद तो आपसे अरुण दीक्षित जी जिनका साफ साफ कहना है कि बेशक एक नेता को अपने पप्पू कह दिया लेकिन देश की जनता आज भी उस पप्पू को प्यार कर रही है लेकिन जो पनौती बने हैं से गिरना का अभाव जनता में अब नया नया दिखाई दे रहा है। निश्चित तौर पे ये देश की राजनीति का दुर्भाग्य है हमारे देश की पूरी राजनीति कहीं ना कहीं पप्पू से पनौती पर जाकर टिक गई है। निश्चित तौर पर देश की अब इन सब मुद्दों पर सोचना चाहिए, विचार करना चाहिए, देश की जनता को विचार करना चाहिए। क्या हम अपने मूलभूत मुद्दों की वजह सिर्फ पप्पू और पनौती पढ़ाएंगे या में इस देश की समस्याओं से लोगों को छुटकारा मिल पायेगा?
 

Bhopal   21/11/2023