नर्मदापुरम।
नर्मदापुरम में सेठानी घाट के पास एक बड़ा सा मकान है, जिसका नाम है- बगीचा। इसी 'बगीचा' के दो फूल यानी दो सदस्य विधानसभा चुनाव मैदान में एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं। दोनों रिश्ते में सगे भाई हैं। बड़े भाई हैं- कांग्रेस के प्रत्याशी गिरिजाशंकर शर्मा और छोटे भाई हैं भाजपा से सीतासरन शर्मा। सियासत के मैदान में भले ही दोनों आमने-सामने हैं, लेकिन दोनों के बीच किसी तरह की कड़वाहट नजर नहीं आती। चुनाव में प्रतिद्वंद्वी एक-दूसरे पर तीखे हमले करते हैं, इससे इतर शर्मा बंधु एक-दूसरे की तारीफ में कसीदे पढ़ते नजर आ रहे हैं। सियासी हमले तो हो रहे हैं, लेकिन पार्टी की नीतियों को लेकर। प्रचार के दौरान आमना-सामना होता है तो छोटे भाई, बड़े भाई को झुककर प्रणाम कर लेते हैं और बड़े भाई यशस्वी भव: का आशीर्वाद देते हैं, लेकिन जीत का नहीं।
भाइयों के बीच चुनावी मुकाबला, मनमुटाव या टकराव नहीं
कांग्रेस प्रत्याशियों की दूसरी सूची में गिरिजाशंकर का नाम घोषित किया गया था। इसके एक ही दिन बाद बीजेपी ने उम्मीदवारों की पांचवीं सूची जारी की और होशंगाबाद से सीतासरन शर्मा को टिकट दे दिया। दिलचस्प बात ये है कि दोनों भाई इसी सीट से विधायक रह चुके हैं। सीतासरन शर्मा 1990, 1993, 1998, 2013 और 2018 में विधायक बने तो गिरिजाशंकर शर्मा 2003 और 2008 में यहां से विधायक चुने गए। ये पहला मौका है, जब दोनों एक-दूसरे के सामने हैं। इसे दोनों भाई दो विचारधाराओं की लड़ाई मानते हैं। दोनों ने कभी भी एक-दूसरे पर कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की और न ही उनके बीच या परिवार में ऐसा कोई अलगाव दिखता है।
गिरिजा बोले- नहीं चाहता था कि दोनों आमने-सामने आएं
गिरिजाशंकर शर्मा ने छोटे भाई के सामने चुनाव लड़ने के सवाल पर कहा कि उन्होंने पूरी कोशिश की थी कि दोनों भाई आमने-सामने न आ पाएं। पीसीसी चीफ कमलनाथ ने पार्टी जॉइन करते ही इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए बोल दिया था। मगर उनका जवाब था कि अगर छोटे भाई डॉ. सीतासरन शर्मा को भाजपा से टिकट मिला तो वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। भाजपा सीतासरन को टिकट देने में लगातार देरी कर रही थी। आशंका इस बात की भी थी कि सीतासरन का टिकट ही कट जाएगा क्योंकि राजेश शर्मा, प्रसन्ना हरणे और माया नरोलिया का नाम इस सीट पर आगे चल रहा था।
अंत में गिरिजाशंकर शर्मा ने चुनाव लड़ने के लिए हामी भर दी। कांग्रेस ने जैसे ही उनको उम्मीदवार बनाया, बीजेपी ने डॉ. सीतासरन शर्मा को ही मजबूत चेहरा मानते हुए मैदान में उतारने का फैसला किया। गिरिजाशंकर शर्मा कहते हैं कि भाजपा ने बेहद मजबूर होकर बेमन से सीतासरन को उम्मीदवार बनाया है।
सीतासरन ने कहा- यह व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की लड़ाई नहीं
भाजपा उम्मीदवार डॉ. सीतासरन शर्मा अपने ही भाई से मुकाबले को व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की लड़ाई नहीं, बल्कि विचारधारा की लड़ाई मानते हैं। भास्कर से बातचीत करते हुए सीतासरन शर्मा कहते हैं, '2003 में बड़े भाई के लिए मैंने कुर्सी छोड़ी थी तो 2013 में उन्होंने मेरे लिए। तब हम भाजपा में साथ हुआ करते थे। भाजपा में रहते हुए हमारे बीच कोई टकराव नहीं था। दोनों भाइयों के बीच निजी टकराव बिल्कुल भी नहीं है। हम आमने-सामने तब आ गए, जब उन्होंने अपनी विचारधारा बदली और कांग्रेस में चले गए। मैं भाजपा की नीतियों को मानता हूं तो अब जो भी सामने आएगा, उससे लड़ना ही पड़ेगा। मेरी लड़ाई भाई से नहीं, बल्कि कांग्रेस के उम्मीदवार के खिलाफ है।'
Bhopal 02/11/2023