वो साल निन्यान्वे था..1999 जब ग्रेजुएशन के बाद माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया। शुरू से घर में साहित्यिक वातावरण मिला, लिखने-पढ़ने में रूचि रही तो लगा कि किसी ऐसे ही क्षेत्र में करियर भी बनाना चाहिए जहां लेखन-पठन जारी रहे। उस समय पत्रकारिता की प्रतिबद्धता से भी प्रभावित थी और इसी सोच ने पत्रकारिता विश्वविद्यालय पहुंचा दिया। मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (Master of Journalism) कोर्स में प्रवेश लिया था और हमारे एचओडी थे कमल दीक्षित सर। जहां तक मेरी स्मृति साथ दे रही है उस समय पुष्पेंद्र पाल सिंह सर MCPR विभाग में थे। लेकिन पीपी सर भला किसी एक विभाग के होकर रह सकते हैं क्या...वो तो जगतगुरू थे हमेशा से। हमारे दाढ़ी वाले बाबा..हंसमुख, मिलनसार, स्नेहिल, खुशमिज़ाज।
साल 2000 में माखनलाल विश्वविद्यालय की तरफ से हमारे सब्जेक्ट के छात्रों का एक स्टडी टूर छत्तीसगढ़ गया...ये अब का छत्तीसगढ़ है जो उस समय मध्य प्रदेश में ही था। उस टूर में हमारे मार्गदर्शक थे पीपी सर। आज से करीब 23 साल पहले के पीपी सर..युवा और ऊर्जा से भरपूर। खैर वे सदैव ही ऊर्जा से परिपूर्ण रहते..इतने कि हम और हमारे बाद की पीढ़ियां भी उनको देखकर चमत्कृत होती। उन 5-6 दिन के टूर ने हम सभी को पीपी सर के और करीब ला दिया। हम कुटुमसर की गुफाओं में गए, दंतेवाड़ा का मंदिर, चित्रकोट जलप्रपात, बस्तर के गांव और हाट देखे..वहां के कई संस्थान और कॉलेज में गए। यहां हमारी नज़र और सर का नज़रिया हमें एक नई दुनिया से रूबरू करवा रहा था। अहा..क्या दिन थे वे।
पीपी सर को जानकर हमने जाना कि कैसे कोई अपनी बातों और व्यवहार में समरूप हो सकता है। कैसे छात्रों से संवाद किया जाता है..पत्रकारिता के कितने सबक पढ़े उनसे और जीवन के भी। साल 2001 में अपने पोस्ट ग्रेजुएशन खत्म होने के तुरंत बाद ही मैं हैदराबाद चली गई ईटीवी में। उस समय रीजनल चैनल्स का कॉन्सेप्ट शुरू ही हुआ था। इसके बाद तो पैरों में चक्कर रहे। हैदराबाद के बाद दिल्ली करीब 7 साल, फिर कुछ समय भोपाल वापसी, भोपाल से मुंबई..यूं इस शहर से अरसे तक दूरी बनी रही। साल 2013 में अपने महबूर शहर भोपाल में लौटना हुआ और फिर से एक बार पीपी सर से पुराने तार जुड़े। बात-मुलाकात का सिलसिला शुरू हुआ और फिर इसमें कभी अवरोध नहीं आया। बता चुकी हूं कि घर में हमेशा से साहित्यिक माहौल था..पापाजी का साहित्य से गहरा जुड़ाव है और उनकी कई किताबें भी आ चुकी है। तो 2011 में जब पापाजी की किताब आई 'आरोह-अवरोह'..विमोचन में पीपी सर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इसके बाद अगली किताब 'शेष कुशल है' के समय भी उन्हें आना ही था। 2022 में ही पापाजी द्वारा शहीद राजेंद्र यादव पर लिखी किताब 'भावांजलि' का विमोचन मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा हुआ और उस समय भी पीपी सर स्टेज पर थे। साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से उनका गहरा जुड़ाव था। पापा की हर किताब के विमोचन पर कहते...श्रुति अपनी किताब लाओ जल्दी, अब तुम्हारी किताब के बारे में बोलना है मुझे। साल 2022 में पब्लिक रिलेशन्स सोसायटी आफ इंडिया (पीआरएसआइ), जिसके मप्र चैप्टर के वे अध्यक्ष थे द्वारा जब मुझे पत्रकारिता हेतु वर्ष 2022 में ‘अचला सम्मान’ से सम्मानित किया गया तो वो एक यादगार क्षण था..अपने गुरू के सामने सम्मान लेने से बढ़कर सम्मान और क्या हो सकता है।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक, 'रोज़गार और निर्माण' अखबार के संपादक प्रो. पुष्पेंद्र पाल सिंह का असमय जाना एक ऐसी क्षति है..जिसकी कोई भरपाई नहीं। उन्होने कितनी पीढ़ियों को एक नई दृष्टि और दिशा दी है। आज राजधानी के पत्रकारिता और साहित्य जगत में शोक व्याप्त है। उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए मेरे शब्द कम पड़ रहे हैं..भाषा साथ छोड़ रही है।
मैं आपको अंतिम विदा नहीं कह पा रही हूं...आप हमेशा स्मृतियों में हंसते मुस्कुराते सजीव रहेंगे सर!
Bhopal 07/03/2023