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उज्जैन के लॉ कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर की पिटाई करने वाले दोनों आरोपी को पुलिस ने जेल भेज दिया है। छात्र को नकल करने से रोका तो उसके दो दोस्त असिस्टेंट प्रोफेसर पर टूट पड़े थे। अपने कॉलेज के टीचर को पिटता देख 59 साल की प्रिंसिपल जान की परवाह किए बगैर बदमाशों से भिड़ गईं। नतीजा, बदमाश भाग निकले। प्रिंसिपल की बहादुरी की वजह से असिस्टेंट प्रोफेसर को ज्यादा चोट नहीं आई। अगर वह वक्त पर नहीं आतीं तो कुछ भी हो सकता था। उनका कहना है कि उस वक्त ऐसा लगा, जैसे कोई दैवीय शक्ति आ गई हो। अब हर कोई लेडी प्रिंसिपल की हिम्मत और साहस की सराहना कर रहा है। दैनिक भास्कर ने बहादुर लेडी प्रिंसिपल अरुणा सेठी से बात की।

जानिए प्रिंसिपल अरुणा सेठी की जुबानी पूरी कहानी...

मंगलवार का दिन था। एलएलबी की प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा के दौरान कुछ बाहरी लोग कॉलेज में घुसने की कोशिश कर रहे थे। इस दौरान गेट पर खड़े असिस्टेंट प्रोफेसर ईश्वर नारायण शर्मा ने उन्हें रोका। वे लोग विवाद करने लगे। शर्मा ने मुझे बुलाया तो मैंने उन लोगों को पुलिस के माध्यम से कॉलेज में प्रवेश नहीं करने दिया। वहां से भगा दिया। एग्जाम खत्म हो गया। हम सभी अगले दिन के पेपर की तैयारियों को लेकर बात कर रहे थे। बातचीत करते हुए शाम 6:30 बजे सभी कॉलेज से निकले। ईश्वर नारायण शर्मा, सहायक प्राध्यापक हर्षवर्धन के साथ कॉलेज से गाड़ी से बाहर निकल रहे थे। वह बाहर निकले ही थे कि दो नकाबपोश बदमाश बाइक से आए। उन्होंने शर्मा की बाइक को धक्का मार कर गिरा दिया।

 

इसी बीच, मैंने अपनी स्कूटी खड़ी कर दी। विवाद कर रहे लोगों को समझाना चाहती थी, लेकिन उसके पहले ही दोनों बदमाश प्रोफेसर शर्मा पर टूट पड़े। उन्हें लात-घूंसे मारने लगे। मेरी उम्र अब 59 साल हो चुकी है, लेकिन अपने सामने कभी गलत होता देख चुप नहीं बैठ सकती। मैं भी उनसे भिड़ गई। पहले तो दोनों से प्रोफेसर शर्मा को छोड़ने की विनती की, लेकिन दोनों ने अनसुना कर दिया। वे मारपीट करते रहे। इसी बीच मैंने एक युवक को पकड़कर पीछे किया। नीचे गिरे प्रोफेसर को अपने हाथों से कवर कर बदमाशों को मारने से रोका। इस दौरान मैं दोनों को समझा भी रही थी कि ऐसा ना करें। अगर कोई विवाद है तो बातचीत करके सुलझाया जा सकता है, लेकिन दोनों जैसे जानलेवा हमला करने की नीयत से आए थे।

प्रोफेसर को जमीन पर गिराने के बाद दोनों हमलावर उनके चेहरे पर लगातार लात मारने लगे। उन्हें दाहिनी आंख, मुंह और सिर में चोट लगी है। साथी प्रोफेसर हर्षवर्धन यादव, देवेंद्र प्रताप सिंह, असीम कुमार शर्मा, कलीम अहमद खान और मैं बीच-बचाव कर रहे थे। उन्होंने कहा तुम बीच में बोलोगी, तो तुम्हें भी मारेंगे। जब दोनों ने मेरी बात नहीं मानी तो मैं भी उन पर टूट पड़ी। गुस्से में न जाने कहां से इतनी शक्ति आ गई कि मैं दोनों के हमलों का जवाब देती रही। 5 से 10 मिनट तक दोनों बदमाशों का सामना किया।

मकसद में सफल नहीं होता देख दोनों वहां से भाग निकले। गनीमत रही कि प्रोफेसर को ज्यादा चोट नहीं आई, लेकिन इस घटना ने शिक्षण संस्थानों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। बदमाशों से उलझने का मेरा निर्णय तात्कालिक था। ऐसा लगा जैसे कोई दैवीय शक्ति ने साथ दिया हो। वैसे तो मैंने सेल्फ डिफेंस जैसा कोई कोर्स नहीं किया है, लेकिन मैं बास्केटबॉल की नेशनल प्लेयर रह चुकी हूं। 34 साल हो गए नौकरी करते हुए, लेकिन अभी भी खेल के दांव-पेच जानती हूं।

पढ़ाई के दौरान में राजस्थान की बास्केटबॉल टीम की कैप्टन हुआ करती थी। यही वजह रही कि जब साथी प्रोफेसर पर हमला हुआ तो मैं खुद को रोक नहीं सकी। जैसे खिलाड़ी किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हटता है, वैसा ही कुछ मेरे साथ है। यह शायद खेल की वजह से ही है।

59 साल की उम्र में बदमाशों को खदेड़ने वाली प्रिंसिपल:बास्केटबॉल की नेशनल प्लेयर रहीं; बोलीं- प्रोफेसर पर हमला होता देख दैवीय शक्ति आ गई

Ujjain   03/03/2023